दो कंपनियों ने काम लेकर हाथ खींचा : रेलवे ने अब तक इस काम के लिए तीन बार टेंडर किया है। पहली बार एक कंपनी साल में 9 करोड़ देने तैयार हो गई। इसके बाद कंपनी ने हाथ पीछे खींच लिए। अगले टेंडर में एक कंपनी ने 8.50 करोड़ रुपए हर साल देने के लिए तैयार हो गई। इसके बाद उस कंपनी ने भी काम नहीं किया। दोनों ही कंपनी की धरोहर राशि डूब गई।
एक दिन में 15 रैक की करनी है सफाई : कोयला के रैक की सफाई करने के दौरान वैगन से जितना भी कोयला मिलेगा। ठेकेदार उसे ट्रक के माध्यम से लेकर जा सकता है। रेलवे ने पांच ट्रकों को इसकी नंबर समेत अनुमति भी दे दी है। ठेकेदार 24 घंटे इसमें से बचा हुआ कोयला निकाल सकेगा। वहीं एक वैगन को साफ करने के बदले ठेकेदार रेलवे को 370 रुपए देगा। एक रैक में 58 वैगन होते हैं। इस तरह से हर दिन करीब 15 रैक रेलवे ठेका कंपनी को देने का वादा किया है।
यहां से खाली होकर आता है रेलवे का रैक रेलवे का रैक कोयला लेकर एनएसपीसीएल और भिलाई इस्पात संयंत्र जाता है। कोयला खाली करने के बाद रैक को पीपी यार्ड में भेजा जाता है। यहां ठेका कंपनी रैक के एक-एक वैगन की सफाई करेगी। सफाई का काम पूरा होने के बाद, रैक को मरम्मत कार्य के लिए भेजा जाएगा।
छह गुना अधिक दर पर लिया काम एक वैगन की सफाई करने के बदले पहले ठेका कंपनी रेलवे को 60 रुपए देती थी। अब जिस कंपनी ने काम लिया है, वह 370 रुपए प्रति वैगन रेलवे को भुगतान करेगी। अंत में तीसरी ठेका कंपनी 7.5 करोड़ साल में देने के लिए तैयार हो गई है। अब यह काम अपर इंडिया कंपनी, भिलाई ने शुरू किया है।