Ujjwala Scheme: केवल 35 हजार ही ले रहे सिलेंडर
गरीब महिलाओं को पारंपरिक धूएं वाली चू्ल्हे में खाना बनाने की परेशानी और प्रदूषण से छुटकारा दिलाने के मकसद से केंद्र सरकार द्वारा योजना के तहत मुफ्त गैस कनेक्शन बांटे गए है। गैस के उपयोग के लिए हितग्राहियों को प्रेरित करने तब सिलेंडर की सिक्योरिटी मनी 1450 रुपए और रेगुलेटर की कीमत 150 रुपए नहीं लिया गया। इन दोनों चीजों की कीमत 1600 रुपए केंद्र सरकार ने ऑयल कंपनियों को भुगतान किया। कनेक्शन लेने वाले से केवल 200 रुपए लिया गया। इसके बाद जरूरत के हिसाब के सिलेंडर हितग्राहियों को रिफिलिंग कराना था, लेकिन अधिकतर हितग्राहियों ने तब सिलेंडर तो ले लिया, लेकिन अब रिफिलिंग नहीं करा रहे।
गांवों में आज भी पारंपरिक ईंधन का चलन
रिफिलिंग के मामले में ग्रामीण परिवारों की स्थिति ज्यादा खराब है। यहां बमुश्किल एक चौथाई ही रिफिलिंग की स्थिति है। पारंपरिक ईंधन के रूप में गांवों में अधिकतर लकड़ी व कंडे का इस्तेमाल होता है। यह ग्रामीण क्षेत्र में यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है। अधिकतर ग्रामीण खेतों व खुले जगहों के पेड़ पौधों का काटकर लकड़ी के रूप में उपयोग कर लेते हैं। एकमुश्त कीमत के कारण रिफिलिंग नहीं
योजना की शुरुआत के समय एक गैस सिलेंडर की कीमत 400 रुपए थी। यह अब बढ़कर 875 रुपए हो गया है। हितग्राहियों को सिलेंडर रिफिलिंग कराने के दौरान यह एकमुश्त एजेंसी में देना पड़ता है। हालांकि बाद में 360 रुपए सब्सिडी के रूप में बैंक खाते में आ जाता है। जानकारों की मानें तो अधिकतर हितग्राही (Ujjwala scheme) एकमुश्त 875 रुपए भुगतान के कारण रिफिलिंग नहीं करा पाते।
स्थाई कीमत के बाद थोड़ी सुधरी स्थिति
गैस सिलेंडर की कीमत लंबे समय से 875 रुपए में स्थायी है। इसके चलते रिफिलिंग की स्थिति थोड़ी सुधरी है। चुनावों से पहले एक सिलेंडर की कीमत 1 हजार 75 रुपए तक पहुंच गई थी और सब्सिडी भी महज 200 रुपए खाते में मिल रहा था। तब रिफिलिंग की स्थिति 22 हजार से 25 हजार हितग्राही तक हो रही थी। इधर चुनाव के बाद से कीमत लगभग स्थिर है। पिछले तीन से चार महीनें से 35 हजार हितग्राही सिलेंडर रिफिलिंग करा रहे हैं।
पारंपरिक इंधन से यह नुकसान
ईंधन के रूप में इस्तेमाल के लिए ग्रामीण क्षेत्र में पेड़ों की अंधाधूंध कटाई हो रही है। इसके चलते न सिर्फ खेत के मेड़ों से बल्कि जंगल लगभग गायब हो चुके हैं। इससे पर्यावरण (Ujjwala scheme) का संतुलन बिगड़ रहा है। पेड़ों की कटाई पर प्रशासनिक रोक का भी असर नहीं हो रहा।
Ujjwala Scheme: मानव स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव
ईंधन के रूप में लकड़ी, कंडे व कोयले के इस्तेमाल से निकलने वाला धुआं सबसे ज्यादा नुकसान फेफड़ों को होता है। खाना बनाने के दौरान महिलाएं ज्यादा समय रसोईघर में रहती है, इस दौरान धुएं के संपर्क में आने से अस्थमा, तपेदिक और फेफड़े के कैंसर जैसी बीमारी का खतरा रहता है।