डॉ. की मानद उपाधि से लेकर देश-विदेश के कई सम्मान उनके नाम हो चुके हैं। उनका कहना है कि जब तक रहूंगी। मेरी हर सांस में पंडवानी रहेगी। मैं बाचूंगी। मैं बाटूंगी। डॉ. तीजन को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सर्वोच्च सम्मान मिलने पर बधाई दी है।
शुक्रवार की रात दिल्ली से फोन आया कि इस वर्ष उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा जा रहा है, तो पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। 62 वर्ष की उम्र में आज भी जब तीजन बाई मंच पर उतरती है तो उनका वही पुराना अंदाज होता है। तेज आवाज के साथ पात्रों के साथ-साथ बदलते चेहरे के भाव पंडवानी में चार चांद लगा देते हैं। 1980 में विदेश यात्रा के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1988 में पद्मश्री और 2003 में कला के क्षेत्र के पद्म भूषण से अलंकृत की गईं। उन्हें 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है। वहीं सितंबर 2108 में जापान में उन्हें फोकोओका सम्मान से सम्मानित किया।
13 साल की उम्र में पहली बार प्रस्तुति
तीजन बाई ने पहली प्रस्तुति 13 साल की उम्र में दुर्ग जिले के चंदखुरी गांव में दी थी। बचपन में नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुन वह भी साथ-साथ गुनगुनाती थीं। कम समय में उन्हें कहानियां याद होने लगीं तब उनकी लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने तीजन बाई को अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। बाद में उनका परिचय प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर से हुआ। तनवीर ने उन्हें सुना और तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के सामने प्रदर्शन करने का मौका दिया।
तीजन बाई ने पहली प्रस्तुति 13 साल की उम्र में दुर्ग जिले के चंदखुरी गांव में दी थी। बचपन में नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुन वह भी साथ-साथ गुनगुनाती थीं। कम समय में उन्हें कहानियां याद होने लगीं तब उनकी लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने तीजन बाई को अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। बाद में उनका परिचय प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर से हुआ। तनवीर ने उन्हें सुना और तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के सामने प्रदर्शन करने का मौका दिया।
कापालिक शैली की पहली महिला पंडवानी गायिका
पंडवानी दो शैली में गाया जाता है वेदमती और कापालिक। महिलाएं वेदमती शैली में पंडवानी केवल बैठकर गातीं थीं। वहीं कापालिक शैली में पुरुष खड़े होकर पंडवानी गाते थे, लेकिन तीजन बाई पहली महिला हैं जिन्होंने कापालिक शैली को अपनाया। आज भी छत्तीसगढ़ी लुगरा के साथ पारंपरिक गहने पहनकर जब डॉ. तीजन मंच पर उतरती है तो दर्शक महाभारत के पात्रों को उनके अंदाज में जीवंत पाते हैं। अपने तंबूरे के साथ वे कई चरित्र और पात्रों को भी दिखाती है। उनका तंबूरा कभी गदाधारी भीम तो गदा तो कभी अर्जुन का धनुष बन जाता है। अपने तंबूरे के साथ वे कई चरित्र और पात्रों को एकल अभिनय के जरिए दिखाती हैं।
पंडवानी दो शैली में गाया जाता है वेदमती और कापालिक। महिलाएं वेदमती शैली में पंडवानी केवल बैठकर गातीं थीं। वहीं कापालिक शैली में पुरुष खड़े होकर पंडवानी गाते थे, लेकिन तीजन बाई पहली महिला हैं जिन्होंने कापालिक शैली को अपनाया। आज भी छत्तीसगढ़ी लुगरा के साथ पारंपरिक गहने पहनकर जब डॉ. तीजन मंच पर उतरती है तो दर्शक महाभारत के पात्रों को उनके अंदाज में जीवंत पाते हैं। अपने तंबूरे के साथ वे कई चरित्र और पात्रों को भी दिखाती है। उनका तंबूरा कभी गदाधारी भीम तो गदा तो कभी अर्जुन का धनुष बन जाता है। अपने तंबूरे के साथ वे कई चरित्र और पात्रों को एकल अभिनय के जरिए दिखाती हैं।
यह सर्वोच्च सम्मन मेरा नहीं पंडवानी कला का
पत्रिका से चर्चा करते हुए डॉ. तीजन ने कहा कि वैसे तो पहले भी दो पद्म पुरस्कार तो मिल चुके हैं मगर सर्वोच्च सम्मान मिलना खुशी की बात तो होती ही है। मुझ तीजन की क्या बिसात, वो तो कला है। पंडवानी जैसी कला जो सम्मान पा रही है। मेरी दिली ख्वाहिश है कि मेरे बाद भी पंडवानी ऐसे ही ऊंचे मुकाम को छूती रहे। छत्तीसगढ़ की इस संस्कृति व कला को संरक्षित रखने मैं नई पीढ़ी को पंडवानी सिखा रही हूं। अब तक 217 बेटियों को प्रशिक्षण दे चुकी हूं।
पत्रिका से चर्चा करते हुए डॉ. तीजन ने कहा कि वैसे तो पहले भी दो पद्म पुरस्कार तो मिल चुके हैं मगर सर्वोच्च सम्मान मिलना खुशी की बात तो होती ही है। मुझ तीजन की क्या बिसात, वो तो कला है। पंडवानी जैसी कला जो सम्मान पा रही है। मेरी दिली ख्वाहिश है कि मेरे बाद भी पंडवानी ऐसे ही ऊंचे मुकाम को छूती रहे। छत्तीसगढ़ की इस संस्कृति व कला को संरक्षित रखने मैं नई पीढ़ी को पंडवानी सिखा रही हूं। अब तक 217 बेटियों को प्रशिक्षण दे चुकी हूं।