विभाग की है जिम्मेदारी
पर्यावरण विभाग के पास केमिकल उद्योग के खिलाफ 5-5 साल से शिकायत पहुंच रही है। विभाग इन उद्योगों का जायजा लेने जाए, प्लांट में ईटीपी लगवाए। ईटीपी का उपयोग किया जा रहा है या केवल शोपीस बन कर रह गया है। यह भी छापामार कार्रवाई करके देखा जा सकता है। इससे भूमिगत जलस्रोत सुरक्षित रहेगा। विभाग का दबाव अगर होता, तो सौ फीसदी उद्योगों में ईटीपी लगा नजर आता।
दिल्ली बोर्ड से भी आते हैं अधिकारी
शिकायत करने पर पर्यावरण विभाग, दिल्ली बोर्ड से भी टीम जांच करने आती है। केमिकल उद्योगों का जांच कर टीम लौट जाती है। इसके बाद जांच रिपोर्ट और कार्रवाई से संबंधित कार्य स्थानीय कार्यालय के जिम्मे दे दिया जाता है। इस तरह से पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।
दूषित जल का उपचार कर, फिर से करना है उपयोग
केमिकल प्लांट में ईटीपी लगाकर प्लांट से निकलने वाले दूषित जल का उपचार किया जाना है। इस प्लांट के माध्यम से अपशिष्ट पानी और दूषित जल को शोधन करके पानी को फिर से उपयोग किया जा सकता है। इस पानी का इस्तेमाल प्लांट और गार्डनिंग के कार्य में किया जा सकता है।
फसलों के लिए भी नुकसानदायक
घरेलू उपयोग व फैक्ट्रियों से निकलने के बाद जल केमिकल युक्त और इसमें केमिकल की गंध आती है। उसका प्रयोग किसी मानवीय कार्य के लिए नहीं किया जा सकता। यहां तक कि इस जल का प्रयोग ना मवेशियों के लिए किया जा सकता है और ना फसलों के लिए किया जा सकता है। अगर इस जल का उपयोग फसलों के लिए करते हैं, तो उनको भी नुकसान पहुंचाते हैं।
क्या होता है ईटीपी
उद्योगों में अपशिष्ट पानी को एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) से साफ किया जाता है। ईटीपी केमिकल उद्योग के दूषित जल को शुद्ध करने की प्रक्रिया होती है। इसके लिए अलग अलग प्रोसेस का प्रयोग किया जाता है।