CG News: साल 1976 यानी अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान बोदला माइंस क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में यूरेनियम की खोज की गई। इसके तुरंत बाद ही यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की देखरेख में यहां यूरेनियम की खुदाई शुरू हुई। कई टन यूरेनियम निकालने के बाद साल 1991 में माइंस को बंद कर दिया गया। भले ही अब माइंस बंद है, लेकिन इसकी भव्यता आज भी बरकरार है।
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CG News: पहले खुशी, फिर मिलने लगा गम
CG News: तीन दशक पहले बंद हो चुकी बोदला माइंस आज कौड़ीकसा के लिए एक भयानक ख्वाब जैसे ही है। भले ही यहां से देश को यूरेनियम का भंडार मिला, लेकिन इसके लिए लोगों ने अपनी प्यास कुर्बान की है। बात साल 2001 की है, जब दुर्ग बीआईटी के प्रोफेसरों को अपनी रिसर्च में कौढ़ीकसा मौत की गोद में बैठा हुआ महसूस हुआ। CG News: रिसर्च में सामने आया कि खदान से यूरेनियम तो निकल लिया गया, लेकिन इसका एक अंग आर्सेनिक अब भी यहां मौजूद है। आर्सेनिक भी एक तरह का केमिकल है जो पानी में घुलकर हजारों की जान ले सकता है। कौड़ीकस गांव और उससे लगे इलाकों के हैंडपंप से निकल रहे पानी में भारी मात्रा में आर्सेनिक मिला।
बीआईटी की रिसर्च रिपोर्ट शासन तक भी पहुंची। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और इस माइंस को पूरी तरह से बंद किया गया। इसके साथ ही गांव के हर बोरवेल, हैंडपंप और कुएं को भी बंद करने का आदेश पारित हुआ। तब से लेकर आज तक माइंस के आसपास के इलाके और पूरा कौड़ीकस गांव शिवनाथ से सप्लाई होने वाला पानी का इस्तेमाल करता है।
मिट्टी में अब भी मिलता है आर्सेनिक
CG News: इस रिसर्च में शामिल रहे बीआईटी के प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार सार ने बताया कि पानी में आर्सेनिक की खबर मिलने के बात कौढ़ीकसा और इससे लगे गांवों में आग की तरह फैली। उस समय लोग इतने खौफ में थे कि, कौड़ीकसा और आसपास के गांवों में अपनी बेटियों की शादी तक नहीं करना चाहते थे। बता दें कि आर्सेनिक यूरेनियम का सब्सिड्रीयर केमिकल है जिसकी वजह से कैंसर होता है। दुर्ग बीआईटी ने 2023 में इसी प्रोजेक्ट पर एक और रिसर्च फाइल की है। इस रिसर्च में सामने आया है कि, आज यह माइंस दशक से बंद है, लेकिन यूरेनियम और आर्सेनिक का असर अब भी यहां देखने को मिलता है। यहां की मिट्टी इससे प्रभावित है, जिससे खेती के बाद उगी चीजों में आर्सेनिक और यूरेनियम के कुछ तत्व मिलते हैं। यह रिसर्च इंटरनेशनल लेवल के जर्नल में प्रकाशित हो चुकी है।