छत्तीसगढ़ की तत्कालीन सरकार ने दुर्ग जिले में कृष्णकुंज योजना के तहत पौधे रोपण में करोड़ों रुपए खर्च किया। मौके पर आज पौधे तो दूर उसके ठूंठ भी नजर नहीं आ रहा है। यहां स्थिति यह है कि जिन क्षेत्रों में प्राकृतिक तौर पर कौहा के पेड़ उगे हैं, उसकी सुरक्षा न वन विभाग कर रहा है न राजस्व विभाग कर रहा है।
जिले के उतई, पाटन, औरी, अंडा घुघुआ, गनियारी, रानीतराई, धमधा समेत अन्य क्षेत्रों में हरे-भरे प्रतिबंधित कौहा पेड़ों की कटाई की जा रही है। लकड़ी तस्कर ऐसी-ऐसी मशीनों और उपकरणों का प्रयोग कर रहे हैं कि चंद समय में पेड़ कट कर गिर जाते हैं। आवाज तक नहीं आती। उसका गोला बनाकर रातोंरात गायब कर दिया जाता है।
निलगिरी की टीपी से कौहा की लकड़ी भेजा जा रहा ओडिशा
लकड़ी तस्कर अपनी आरामिलों में कौहा के गोला की चिराई करते हैं। हरी-हरी लकड़ियों का पट्टा बनाकर उसे ओडिशा और गुजरात में सप्लाई कर रहे हैं। जब वन विभाग के अधिकारी उनकी आरामिलों में पहुंचते है तो उन्हें निलगिरी की टीपी दिखाते है। पुरानी टीपी को देखकर भी अधिकारी कार्रवाई नहीं करते। मैदानी क्षेत्रों में प्रतिबंधित लकड़ी कौहा की कटाई नहीं की जा सकती है। इसके काटने के लिए अनुमति आवश्यक है। माफिया किसानों को लालच देकर कटाई कर रहे हैं। उनके खेतों के पौधों को खरीदते है। सरपंच से मिलीभगत कर कटाई करते हैं। यह भी पढ़ें
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कौहा का गोला खपाया जा रहा
भिलाई के जामुल, उतई, गाड़ाडीह, पाटन, रानीतराई और अंडा में 50 से अधिक ऑरा मिल वैध और अवैध दोनों तरह के संचालित है। ऑरामिल जामुल, उतई , गाड़ाडीह, घुघुआ, पाटन, धमना, पाहंदा, कुहारी आदि में संचालित ऑरामिलों में पहले लकड़ी पकड़ा गया था। लकड़ी तस्करी से जुड़े सूत्रों का दावा है कि इन्ही ऑरामिलों में आज भी कौहा का गोला खपाया जा रहा है। प्राथमिक रूप से टीपी जरुरी है। कौहा प्रतिबंधित लकड़ी है। ऑरामिलों में टीपी नहीं होगी, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। निलगिरी की टीपी में कौहा सप्लाई कर रहे है तो ऐसे ऑरामिलों पर सत कार्रवाई की जाएगी। – चंद्रशेखर परदेशी, डीएफओ दुर्ग