लोग इसे रामराज वाली कचहरी भी कहते हैं। इस हवेली के कर्ताधर्ता व सूबेदार मोती सिंह रियासत के वारिस दयाल दास गुप्ता बताते हैं कि कचहरी का वाकया अंग्रेजी शासन काल से शुरू होता है। जब रजवाड़े आगरा से खैरागढ़ आए तो मोती सूबेदार को ४८४ गांवों की सूबेदारी सौंपी थी। मोती सूबेदार एक तरह से अघोषित राजा थे। उन्होंने ही आराम फरमाने के लिए इस हवेली व कचहरी का निर्माण कराया था।
इस हवेली के तीन ओर से मुख्यद्वार हैं। द्वार पर सागौन से निर्मित बड़े-बड़े दरवाजे एकदम सही सलामत हैं। कमरों के अंदर सागौन के पिल्ल्र और मेहराब बनाए गए हैं। जिन पर भगवान और फूल-पत्तों की बेहद बारीक नक्काशी की गई है। छोटे-छोटे कमरों की यह हवेली तीन मंजिला है, जिसमें ऊपर जाने के लिए लकड़ी की सीढ़ी है। लकड़ी का बिंब और इस पर बनी छत गवाही देते हैं कि इसे बनाने मोती सूबेदार ने कमाल इंजीनियरिंग का चुनाव किया होगा। इंग्लैंड से लाई गई एक तिजोरी भी है, जिसमें लगान वसूली के पैसे रखे जाते थे। इस तिजोरी को खोलने अंकों का एक विशेष कोड है, जो अब किसी को पता नहीं।
इंतजाम पूरे थे पर दे नहीं पाए फांसी
इस हवेली के वंशज दयाल प्रसाद बताते हैं कि अंग्रेजों ने मोती सूबेदार को लगान वसूली के अलावा न्यायिक फैसले लेने के अधिकार भी दिए थे। दाऊबाड़ा में कचहरी लगती थी। पुख्ता सबूत तो नहीं मिलते, लेकिन ऐसा बताया जाता है कि न्याय के तहत यहां एक अपराधी को फांसी देने के लिए पूरे इंतजाम कर लिए गए थे। पर ऐसा हो नहीं सका। अंग्रेजी की दखल से अपराधी आजाद हो गया। यही नहीं ये वही हवेली हैं जहां सूबेदार ने अपने ही बेटे का अपराध सिद्ध होने पर उसे पांच कोड़े लगाने का हुक्म दिया था। एक कमरा सिर्फ सजा देने के लिए तय किया गया था, जिसमें लगान नहीं चुका पाने वालों पर कोड़े बरसाए जाते थे।
इस हवेली के वंशज दयाल प्रसाद बताते हैं कि अंग्रेजों ने मोती सूबेदार को लगान वसूली के अलावा न्यायिक फैसले लेने के अधिकार भी दिए थे। दाऊबाड़ा में कचहरी लगती थी। पुख्ता सबूत तो नहीं मिलते, लेकिन ऐसा बताया जाता है कि न्याय के तहत यहां एक अपराधी को फांसी देने के लिए पूरे इंतजाम कर लिए गए थे। पर ऐसा हो नहीं सका। अंग्रेजी की दखल से अपराधी आजाद हो गया। यही नहीं ये वही हवेली हैं जहां सूबेदार ने अपने ही बेटे का अपराध सिद्ध होने पर उसे पांच कोड़े लगाने का हुक्म दिया था। एक कमरा सिर्फ सजा देने के लिए तय किया गया था, जिसमें लगान नहीं चुका पाने वालों पर कोड़े बरसाए जाते थे।
रियासत में कभी नहीं लगे मकानों मेें ताले
दयाल प्रसाद बताते हैं कि उस समय न्याय बहुत कठोर हुआ करता था। रजवाड़ों के वंशज होने की वजह से पशु और जीव हत्या गंभीर अपराध था। धान खुले में पड़ा रहता था, लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे। चोरी-लड़ाई जैसे अपराध की खबर मिलने पर इस कचहरी भवन में दो पक्षों को बुलाकर न्याय किया जाता था।