महासती हेमप्रभा ने कराया पच्चखाण
गुरू आचार्य रामलाल महाराज की अनुमति के बाद उनकी शिष्या महासती हेमप्रभा ने पुष्पादेवी को तिविहार संथारा का व्रत धारण कराया। इसके लिए उन्होंने पुष्पा देवी को गुरू आज्ञा की जानकारी देकर व्रत की प्रक्रिया समझाई। इसके बाद उन्होंने विधिवत संथारा लिया।
गुरू आचार्य रामलाल महाराज की अनुमति के बाद उनकी शिष्या महासती हेमप्रभा ने पुष्पादेवी को तिविहार संथारा का व्रत धारण कराया। इसके लिए उन्होंने पुष्पा देवी को गुरू आज्ञा की जानकारी देकर व्रत की प्रक्रिया समझाई। इसके बाद उन्होंने विधिवत संथारा लिया।
डॉक्टरों ने दी घर में इलाज की सलाह
पुष्पादेवी के पुत्र साइंस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अभिनेष सुराना ने बताया कि मां करीब ६ से अस्वस्थ्य हैं। इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने उनकी अधिक उम्र को देखते हुए घर में ही उपचार कराने की सलाह दी। इस पर उन्हें घर लाया गया। इसके बाद उन्होंने संथारा की इच्छा जाहिर की।
पुष्पादेवी के पुत्र साइंस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अभिनेष सुराना ने बताया कि मां करीब ६ से अस्वस्थ्य हैं। इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने उनकी अधिक उम्र को देखते हुए घर में ही उपचार कराने की सलाह दी। इस पर उन्हें घर लाया गया। इसके बाद उन्होंने संथारा की इच्छा जाहिर की।
तिविहार संथारा में केवल मांगने पर पानी देने की है अनुमति
पुष्पादेवी तिविहार संथारा कर रहीं हैं। जैन समाज के प्रतिनिधियों के मुताबिक इसमें साधक के मांगे जाने पर ही केवल पानी दिए जाने की अनुमति होती है। जबकि चौविहार संथारा में इसकी भी अनुमति नहीं होती।
पुष्पादेवी तिविहार संथारा कर रहीं हैं। जैन समाज के प्रतिनिधियों के मुताबिक इसमें साधक के मांगे जाने पर ही केवल पानी दिए जाने की अनुमति होती है। जबकि चौविहार संथारा में इसकी भी अनुमति नहीं होती।
चार माह के भीतर शहर में दूसरी संथारा
चार माह के भीतर शहर में यह दूसरी संथारा है। इसके पहले इसी साल फरवरी में महावीर कॉलोनी की शोभा देवी पति टीकमचंद भंडारी ने संथारा लिया था। इसके पूर्व अगस्त 2015 में दिगंबर संप्रदाय के मुनि आध्यात्म सागर ने भी यहां संलेखना कर देह त्याग किया था।
चार माह के भीतर शहर में यह दूसरी संथारा है। इसके पहले इसी साल फरवरी में महावीर कॉलोनी की शोभा देवी पति टीकमचंद भंडारी ने संथारा लिया था। इसके पूर्व अगस्त 2015 में दिगंबर संप्रदाय के मुनि आध्यात्म सागर ने भी यहां संलेखना कर देह त्याग किया था।
अंतिम सांधना है संथारा जैन धर्म में स्वेच्छा से देह त्यागने की साधना को संथारा कहा जाता है। जैन धर्म के दूसरे पंथ दिगम्बर इसे सल्लेखना कहते हंै। संथारा लेने वाले व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों और गुरु से निर्देश प्राप्त करना आवश्यक है। सूर्योदय के साथ शुरू होने वाले संथारा में अन्न जल का त्याग कराया जाता है और भगवान महावीर के उपदेश के साथ ही नवकार मंत्र का अंखड जाप किया जाता है।