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भरतपुर

मुफलिसी के बीच मुसीबत, जोखिम में जान

– कोरोना के बाद अब ऑक्सीजन की मार

भरतपुरJun 30, 2021 / 08:33 am

Meghshyam Parashar

मुफलिसी के बीच मुसीबत, जोखिम में जान

मुफलिसी के बीच मुसीबत, जोखिम में जान

भरतपुर. मुफलिसी के बीच महामारी की मार से लाखन की जिंदगी बच तो गई है, लेकिन अब अगले दो माह तक ऑक्सीजन की दरकार ने परिवार के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है। जयपुर के एसएमएस में भर्ती लाखन को चिकित्सक सुरक्षा के लिहाज से छुट्टी दे रहे हैं। साथ ही उन्हें करीब दो माह तक ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर पर रखने की नसीहत भी दे रहे हैं, लेकिन आर्थिक रूप से तंग परिवार के पास कन्सन्ट्रेटर की व्यवस्था नहीं हैं। ऐसे में यह परिवार छुट्टी कराने को लेकर उलझन में है।
मजूदरी करने वाले गांव चिचाना निवासी लाखन सिंह (58) को अप्रेल माह में कोराना हुआ। इसके बाद उन्हें शहर के आरबीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया। करीब एक माह तक भर्ती रखने के बाद उन्हें जयपुर रैफर कर दिया गया। अब वह 18 मई से एसएमएस अस्पताल में भर्ती हैं। अब उनकी कोरोना सहित अन्य रिपोर्ट नेगेटिव आ गई हैं, लेकिन उन्हें फिलहाल आईसीयू में रखा हुआ है, जो ऑक्सीजन पर निर्भर हैं। लाखन सिंह के पुत्र पुष्पेन्द्र सिंह ने बताया कि फिलहाल उनके पिता को ऑक्सीजन मास्क लगा रखा है। एमएमएस के चिकित्सकों ने ट्रीटमेंट बंद कर उन्हें घर ले जाने कहा है। चिकित्सकों का कहना है कि ज्यादा दिन आईसीयू में रखने से उन्हें वापस संक्रमण फैल सकता है। चिकित्सक उन्हें करीब दो माह तक ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर के सहारे रखने की बात कह रहे हैं। पुष्पेन्द्र का कहना है कि परिवार की माली हालत ठीक नहीं है। ऐसे में कन्सन्ट्रेटर खरीदना उनके लिए मुश्किल है।
भामाशाह कार्ड से हुआ इलाज

लाखन सिंह का एसएमएस अस्पताल में भामाशाह कार्ड से इलाज हुआ है। सभी दवा, जांच एवं बेड आदि का खर्च भी भामाशाह योजना के तहत सरकार ने उठाया है। अब छुट्टी होने के बाद उन्हें कन्सन्ट्रेटर के सहारे रखना परिवार के लिए मुसीबत बन गया है। परिवार का कहना है कि यदि उन्हें भामाशाह के सहयोग से कन्सन्ट्रेटर मिल जाए तो उनकी जान बच सकती है।
अब मदद की दरकार

लाखन सिंह के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं बताई जा रही है। वह खुद मजदूरी करते हैं। परिवार का कहना है कि वह खुद कन्सन्ट्रेटर खरीदने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में वह संस्थाओं से मदद की उम्मीद संजोए हैं। परिवार का कहना है कि यदि किसी संस्था की मदद मिल जाए तो लाखन की सांसें सलामत रह सकती हैं।

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