पहले भी हो चुका फर्जीवाड़ा, दर्ज हुई थी रिपोर्ट जून माह में भरतपुर में संचालित मोटर ड्राइविंग स्कूल में ड्राइविंग प्रशिक्षण के लिए लगा रखे भारी वाहनों का उपयोग अन्य कार्य में हो रहा था। ड्राइविंग स्कूल में संचालित वाहनों का अन्य कार्य के उपयोग में लेते हुए ई रवन्ना एवं ई वे बिल जारी हुए थे। ऐसे में उनको नोटिस जारी किए गए थे, हालांकि बाद में मामले में खानापूर्ति कर दी गई थी।
कौन खोल सकता है ड्राइविंग स्कूल ड्राइविंग स्कूल खोलने के लिए परिवहन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है। इसके लिए कई शर्तों को पूरा करने के अलावा बैंक गारंटी भी देनी पड़ती है। ड्राइविंग स्कूल के संचालक का स्नातकोत्तर होना जरूरी है। ड्राइविंग स्कूल चलाने वाले संचालक की आर्थिक स्थिति मजबूत होनी चाहिए और उसे मोटर मैकेनिकल ऑटो मोबाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा होल्डर होना जरूरी है। ट्रेनिंग स्कूल में सभी वाहन टैक्सी में रजिस्ट्रर्ड होंगे। इन वाहनों का बीमा, फिटनेस और टैक्स जमा होना चाहिए। ड्राइविंग स्कूल संचालक के पास ऑफिस का पूरा सेटअप होना चाहिए। पे्रक्टिकल और थ्योरी करवाने के लिए जरूरी उपकरण भी हो।
वाहन से नहीं कर सकते हैं छेड़छाड़ बिना अनुमति के किसी भी निजी वाहन में मैकेनिज्म सिस्टम से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। शहर में जो लोग कार चलाना सिखा रहे हैं उनकी कारों में डबल क्लिच और बे्रक लगे हुए हैं, जो कि पूरे तौर से गैर कानूनी है। इन निजी वाहनों पर टैक्सी नम्बर भी नहीं है। नियम के मुताबिक परिवहन विभाग और यातायात पुलिस जहां चाहे इन वाहनों को सीज कर सकती है। सीज वाहनों को छोड़ते समय डबल क्लिच और बे्रक उतरवाना जरूरी है।
खुद विभाग के अफसरों का बड़ा खेल ड्राइविंग स्कूलों के फर्जीवाड़े के पीछे खुद विभागीय अधिकारियों की मेहरबानी का खेल छिपा है। क्योंकि बात चाहे ड्राइविंग स्कूल की हो या फिटनेस सेंटर या ऑटोमेटिक ड्राइविंग ट्रेक, हरेक में विभाग के किसी न किसी अधिकारी की परिजन या रिश्तेदारों के माध्यम से सहभागिता छिपी होती है। इस कारण कार्रवाई के नाम पर भी इतिश्री कर दी जाती है और मेहरबानी जारी रहती है।
इनका कहना है मुझे इस संबंध में आज ही जानकारी मिली है। इस मामले की जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी। सतीश कुमार, प्रादेशिक परिवहन अधिकारी भरतपुर हम इस स्कूल में नाम मात्र के पार्टनर हैं। इसके संचालक दूसरे हैं। वह गाड़ी पुरानी जरूर है, लेकिन जमींदोज होने की मुझे जानकारी नहीं है। मैं भरतपुर में तीन साल पहले था। वाहन चलने योग्य होगा तभी डीटीओ या अन्य अधिकारियों ने रिपोर्ट की होगी। वैसे यह काम पाराशरजी देखते हैं। हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है।
पी.आर. मीना, जिला परिवहन अधिकारी चूरू