कुशल योद्धा की तरह लड़े और पा ली फतह भरतपुर. पहली लहर ने जहां डराया था। वहीं दूसरी लहर ने झकझोर सा दिया। खास तौर से दूसरी लहर में युवाओं के संक्रमित होने से चिंता बढ़ गई थी। इस फिक्र के बीच हजारों जिंदगियों को बचाने की जिम्मेदारी भी चिकित्सकों के कंधों पर थी। धैर्य के साथ इस डर को दूर करना था। प्रशासन के सहयोग और योद्धा की तरह लड़ी चिकित्सकों की टीम से यह सब संभव हो सका। डर को मिटाने के साथ हम जिंदगियों को बचाने में भी कामयाब हुए। यह कहना है आरबीएम के मेडिकल के एचओडी डॉ. मुकेश गुप्ता का।
डॉ. गुप्ता कहते हैं कि डरावने दौर के बीच परिवार के लिए फिक्रमंद तो सभी थे, लेकिन मन में एक ही ध्येय था कि हम इस संकट काल में मरीजों की जिंदगी बचाएं। ऐसे में परिवार ने आगे आकर खुद की जिम्मेदारी संभाली। ऐसे में हम बेफिक्र मरीजों की सेवा में जुटे रहे। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि यह दौर एक सीख देकर गया है, लेकिन सुकून इस बात का है कि हम बहुत हद तक भरतपुर को सुरक्षित रखने में कामयाब रहे। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि इस दौर में चिकित्सक एवं नर्सिंगकर्मियों ने खुद की परवाह किए बगैर आगे आकर जिम्मेदारी संभाली। वहीं प्रशासन ने इस चुनौती भरे समय में लोगों की जिंदगी बचाने को दिन-रात एक कर दिया। खास तौर से चिकित्सा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग एवं जिला कलक्टर हिमांशु गुप्ता ने संसाधनों का अभाव नहीं होने दिया। इसी बदौलत हम जंग जीतने में कामयाब रहे। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि बिना हथियारों के युद्ध जीता नहीं जा सकता था। ऐसे में प्रशासन ने ऑक्सीजन समेत तमाम दवाओं का बेहतर बंदोबस्त किया। इससे भरतपुर महफूज हो सका। यह समय पीडि़ता मानवता की सेवा का था, जो चिकित्सकों ने बखूबी निभाया। पूरी लगन के साथ बिना थके टीम ने काम किया। यही वजह रही आज भरतपुर सुरक्षित है।
डॉ. गुप्ता कहते हैं कि डरावने दौर के बीच परिवार के लिए फिक्रमंद तो सभी थे, लेकिन मन में एक ही ध्येय था कि हम इस संकट काल में मरीजों की जिंदगी बचाएं। ऐसे में परिवार ने आगे आकर खुद की जिम्मेदारी संभाली। ऐसे में हम बेफिक्र मरीजों की सेवा में जुटे रहे। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि यह दौर एक सीख देकर गया है, लेकिन सुकून इस बात का है कि हम बहुत हद तक भरतपुर को सुरक्षित रखने में कामयाब रहे। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि इस दौर में चिकित्सक एवं नर्सिंगकर्मियों ने खुद की परवाह किए बगैर आगे आकर जिम्मेदारी संभाली। वहीं प्रशासन ने इस चुनौती भरे समय में लोगों की जिंदगी बचाने को दिन-रात एक कर दिया। खास तौर से चिकित्सा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग एवं जिला कलक्टर हिमांशु गुप्ता ने संसाधनों का अभाव नहीं होने दिया। इसी बदौलत हम जंग जीतने में कामयाब रहे। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि बिना हथियारों के युद्ध जीता नहीं जा सकता था। ऐसे में प्रशासन ने ऑक्सीजन समेत तमाम दवाओं का बेहतर बंदोबस्त किया। इससे भरतपुर महफूज हो सका। यह समय पीडि़ता मानवता की सेवा का था, जो चिकित्सकों ने बखूबी निभाया। पूरी लगन के साथ बिना थके टीम ने काम किया। यही वजह रही आज भरतपुर सुरक्षित है।
खुद हुए संक्रमित, फिर जान बचाने को रहे समर्पित भरतपुर . कोरोना की दूसरी लहर वाकई डराने वाली थी। हर जिंदगी दहशत में नजर आ रही थी। ऐसे में टूटती सांसों का सहारा चिकित्सक ही थे। हालांकि चिकित्सक भी इससे महफूज नहीं थे, लेकिन खुद की सुरक्षा के साथ मरीजों का जीवन बचाना पहली प्राथमिकता में शुमार किया। यही वजह रही कि भरतपुर कोरोना को हराने में कामयाब हो गया। यह कहना है कि आरबीएम चिकित्सालय के चिकित्सक फिजीशियन डॉ. सुनील पाठक का। कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों का जीवन सुरक्षित करते हुए डॉ. पाठक खुद संक्रमित हो गए, लेकिन इस दरिम्यान भी वह ऑनलाइन माध्यम से मरीजों की पीड़ा हरने में लगे रहे। डॉ. पाठक कहते हैं कि पहली लहर में परिवार को लेकर ज्यादा फिक्र थी, लेकिन परिवार के साथ मरीजों की जिंदगी बचाना भी हमारी जिम्मेदारी थी। सो, दूसरी लहर में परिवार को डर से बाहर लाकर मरीजों की सेवा में जुटे। इस बीच परिवार से थोड़ी दूरी रही, लेकिन दूसरी लहर में परिवार भी ‘जानोंÓ की कीमत समझ चुका था। ऐसे में इस कठिन दौर में परिवार को भी खूब सपोर्ट मिला। डॉ. पाठक कहते हैं कि पॉजिटिव होने के बाद खुद को होम क्वारंटीन किया। इस बीच ऑनलाइन मीटिंग्स वगैरह में खूब सक्रिय रहे। इस बीच ड्यूटी के घंटे भी तय नहीं थे। सुबह की ड्यूटी करने के बाद शाम को भी ज्यादातर इमरजेंसी आने पर जाना पड़ता था। डॉ. पाठक 25 अप्रेल को पॉजिटिव हुए थे। इसके बाद वह 1 मई को नगेटिव हो गए। इसके बाद से वह निरंतर मरीजों की सेवा में जुटे रहे। इससे पूर्व पहली लहर में भी डॉ. पाठक ने कोरोना के समय मरीजों की खूब सेवा की।
हम आगे नहीं आते तो कौन बचाता जिंदगी भरतपुर . कोरोना की दूसरी लहर ने सब कुछ तहस-नहस सा कर दिया, लेकिन चिकित्सकों की टीम धैर्य के साथ मोर्चे पर डटी रही। इसी की बदौलत हम लोगों की जिंदगी बचाने में कामयाब हो सके। हालांकि यह बड़ी चुनौती थी, लेकिन चिकित्सकों ने इसका डटकर मुकाबला किया। यह इस पेशे का दायित्व भी था। यदि हम आगे नहीं आते तो लोगों की जिंदगी कौन बचाता। यह कहना है कि शहर के वरिष्ठ फिजीशियन 84 वर्षीय डॉ. आर.जी. अग्रवाल का। सीएमएचओ पद से सेवानिवृत कृष्णा नगर निवासी डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि यह बात जेहन में थी कि इस दौर में घर से बाहर नहीं निकलना है, लेकिन घर पर उम्मीद में आए मरीजों को निराश भी नहीं कर सकते थे। इसी भावना के साथ मरीजों की सेवा में जुटे रहे। इस दौरान कुछ पॉजिटिव तो कुछ नेगेटिव मरीज सामने आए। सभी को उचित उपचार दिया गया। डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि कोरोना के दौर में नाउम्मीद मरीजों को हौसला तोड़ रही थी। इस समय मैंने यह ठाना था कि कोई भी मरीज बिना उपचार के नहीं लौटे। हालांकि इसमें उम्र की रोड़ा था, लेकिन पूरे हौसलों के साथ चिकित्सक पेशे के धर्म को निभाया। आज हालात बेहतर हैं। डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि लोग अब मास्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग रखने और वैक्सीन लगवाने के प्रति जागरूक हुए हैं। यही एक वजह है जिससे हम तीसरी लहर से खुद को सुरक्षित रख सकते हैं। डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि इस दौर में जो चिकित्सक से जो सेवा बनी। वह उसने की। इसी की बदौलत आज हम सुकून के दौर में हैं।
जज्बे के आगे हार जाती है उम्र, निर्धन परिवारों से नहीं लेते फीस भरतपुर . सेवा और जुनून उनकी रग-रग में समाया है। उम्र भले ही इसकी इजाजत नहीं देती हो, लेकिन बात जब नौनिहालों की जिंदगी की बचाने की आती है तो वह अपने जोश के सामने उम्र को भी मात देते हैं। कोराना काल में भी उन्होंने अपने तजुर्बे का बखूबी उपयोग किया और बच्चों को महफूज करने में कामयाब रहे। हम बात कर रहे हैं सेवानिवृत शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. महेन्द्र सिंह की।
जवाहर नगर निवासी डॉ. सिंह की उम्र वर्तमान में 74 वर्ष है। वह वर्ष 2020 में ऐच्छिक सेवानिवृति ले चुके हैं, लेकिन सेवा का जज्बा ऐसा है कि कोई भी मरीज यदि घर दिखाने पहुंच जाए तो वह निराश होकर नहीं लौटता। खास बात यह है कि डॉ. सिंह फीस भी समृद्ध लोगों से ही लेते हैं। निर्धन परिवार, शहीद की विधवा, आर्मी में नौकरी करने वाले सैनिक एवं ऐसे लोग जो फीस नहीं दे सकते हैं। वह उनसे कभी फीस नहीं लेते। इसके पीछे उनकी धारण मानव सेवा की है। वह कहते हैं कि आज भी समाज में बहुतेरे ऐसे लोग हैं, जो महंगा इलाज कराने में समक्ष नहीं हैं। ऐसे लोगों की सहायता करना सभी का धर्म बनता है। खास तौर से चिकित्सकीय पेशा ऐसा है, जहां से हम ऐसे पीडि़त लोगों की सेवा कर सकते हैं। इसी धारणा के चलते वह ज्यादातर बिना फीस के ही मरीजों की सेवा करते हैं। डॉ. सिंह अन्य समाज सेवा के कार्यों से भी जुड़े हुए हैं। डॉ. सिंह के पुत्र डॉ. दीपक सिंह भी भरतपुर के राजकीय मेडिकल कॉलेज में तैनात हैं।
जवाहर नगर निवासी डॉ. सिंह की उम्र वर्तमान में 74 वर्ष है। वह वर्ष 2020 में ऐच्छिक सेवानिवृति ले चुके हैं, लेकिन सेवा का जज्बा ऐसा है कि कोई भी मरीज यदि घर दिखाने पहुंच जाए तो वह निराश होकर नहीं लौटता। खास बात यह है कि डॉ. सिंह फीस भी समृद्ध लोगों से ही लेते हैं। निर्धन परिवार, शहीद की विधवा, आर्मी में नौकरी करने वाले सैनिक एवं ऐसे लोग जो फीस नहीं दे सकते हैं। वह उनसे कभी फीस नहीं लेते। इसके पीछे उनकी धारण मानव सेवा की है। वह कहते हैं कि आज भी समाज में बहुतेरे ऐसे लोग हैं, जो महंगा इलाज कराने में समक्ष नहीं हैं। ऐसे लोगों की सहायता करना सभी का धर्म बनता है। खास तौर से चिकित्सकीय पेशा ऐसा है, जहां से हम ऐसे पीडि़त लोगों की सेवा कर सकते हैं। इसी धारणा के चलते वह ज्यादातर बिना फीस के ही मरीजों की सेवा करते हैं। डॉ. सिंह अन्य समाज सेवा के कार्यों से भी जुड़े हुए हैं। डॉ. सिंह के पुत्र डॉ. दीपक सिंह भी भरतपुर के राजकीय मेडिकल कॉलेज में तैनात हैं।