सर्वोत्तम सेवा के जरिए देश-दुनिया में अपना घर आश्रम अपनी अलग पहचान कायम कर चुका है। देशभर के आश्रमों में काम करने वाले सेवा साथियों की तनख्वाह का करीब 90 प्रतिशत भुगतान अजीज प्रेम फाउंडेशन करता है। यह राशि एक साल की करीब 7 करोड़ रुपए होती है। फाउंडेशन करीब तीन सौ से ज्यादा ऐसी संस्थाओं को सपोर्ट कर रहा है।
फाउंडेशन ने अपना घर प्रशासन को ऑफर दिया कि वह 150 करोड़ रुपए एक मुश्त ले ले। इसकी एफडीआर के रूप में इन्ट्रेस्ट मिलता रहेगा, जिससे सेवा साथियों का मानदेय सहज रूप से मिल जाएगा, लेकिन अपना घर ने एक साथ इतनी बड़ी राशि लेने से मना कर दिया। आश्रम का मानना है कि हमारा धर्म सिर्फ सेवा है। हमें जितनी चीजों की जरूरत होती है, उतनी जरूरत के लिए ठाकुरजी को चिट्ठी लिख दी जाती है और वह जरूरत हर हाल में पूरी हो जाती है।
संस्था का कहना है कि उनका ठाकुरजी पर अटूट विश्वास है। ऐसा कोई दिन नहीं होगा, जब ठाकुरजी को चिट्ठी लिखी जाए और आश्रम की जरूरत पूरी नहीं हों। यही वजह है कि संस्था भविष्य के लिए कभी राशि एकत्रित नहीं करती।
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हमने संविधान में लिखा एफडीआर नहीं कराएंगे
संस्था पदाधिकारियों का कहना है कि अपना घर ने अपने संविधान में लिखा है कि कभी संस्था संचालन के उद्देश्य से भविष्य के लिए एफडीआर नहीं कराएंगे। यदि ऐसा कभी किया तो यह भगवान से विश्वास उठने जैसा होगा। जिस दिन संस्था की जरूरत पूरी नहीं होंगी, उस दिन ऐसा सोचा जा सकता है, लेकिन शायद ऐसा दिन कभी नहीं आएगा। हालांकि किसी बिल्डिंग आदि बनाने का काम हो तो एक मुश्त राशि को संस्था कुछ दिन के लिए ही एफडीआर कराती है, जिससे भवन का काम नहीं रुके। संस्था के कुल 61 आश्रम हैं। इसमें 42 संस्था की सीधी ब्रांच हैं, जबकि 19 आश्रम से सबद्ध हैं। अजमेर, कोटा एवं जयपुर आश्रम को आंशिक रूप से राजकीय सहायता मिलता है, लेकिन यह कुल खर्चे का 2 प्रतिशत से भी कम है। यानि यह राशि खर्चे के लिहाज से नाम मात्र ही है।
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नियमित दान सबसे बड़ी पूंजी
अपना घर आश्रम की सबसे बड़ी पूंजी नियमित दानदाता हैं। लाखों-करोड़ों देने वालों से नहीं, बल्कि आय का मुय स्रोत 50-100 रुपए मासिक देने वाले, एक बोरी अन्न देने वाले, जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ एवं पुण्यतिथि मनाने वाले हैं। इस साल की बात करें तो अपना घर में डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों ने दान दिया है। ऐसा नहीं है कि संस्था को पैसे की जरूरत नहीं है, लेकिन सिद्धांत और रीति-नीति के मुताबिक एफडीआर संस्था नहीं कराती। यहां 97 प्रतिशत चंदा चेक के जरिए ही लिया जाता है। खास बात यह है कि 98 प्रतिशत खर्चा संस्था भी चेक के जरिए करती है।
पैसे की जरूरत संस्था को खूब है, लेकिन नीति-रीति और सिद्धांत के कारण एफडीआर नहीं कराते। वर्तमान की बात करें तो संस्था के पास प्रभुजी को पांच माह का खाना खिलाने तक की व्यवस्था नहीं है, लेकिन विचारधारा ही ऐसी है कि एफडीआर नहीं कराएंगे। यही वजह है कि लाखों लोगों का विश्वास संस्था के प्रति अडिग है। सिद्धांतों की बदौलत ही संस्था आज महज 24 साल में अपनी श्रेणी का विश्व का सबसे बड़ा होम है।- डॉ. बी.एम. भारद्वाज, संस्थापक अपना घर भरतपुर