भरतपुर के श्मशान परिसर में ही श्मशानेश्वर महादेव मंदिर और भैरवनाथ मंदिर हैं। साल में एक बार यहां अन्नकूट और पौषबड़ा जैसे कार्यक्रम होते हैं। इसमें बड़ी संख्या में लोग प्रसादी लेने पहुंचते हैं। यही वजह है कि यहां श्मशान जैसा नहीं, बल्कि पार्क सरीखा सकारात्मक बदलाव नजर आता है। साल में होने वाले कार्यक्रम केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह उस बदलाव का भी प्रतीक हैं, जिसे संस्था प्रबंधन और स्थानीय समुदाय ने मिलकर लाया गया है।
निखर रहा स्वरूप
कभी यह मोक्ष धाम असामाजिक तत्वों का जमावड़ा बना रहता था, लेकिन अब इसकी आभा लोगों को खींचती नजर आती है। मोक्षधाम के निखरे हुए स्वरूप की बात करें तो यहां के विकास कार्यों ने इस स्थान को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है। पहले जो श्मशान भय और उदासी का प्रतीक था, अब वह हरा-भरा और आकर्षक बन गया है। यहां रंगाई-पुताई और अन्य विकास कार्यों पर पैसा खर्च किया जा रहा है। यहां लगे पेड़-पौधे और हरियाली आने वाले व्यक्ति को आकर्षित करती है।50 हजार प्रतिमाह खर्च
यूं तो अन्य श्मशान में खर्च न के बराबर होता है। वजह, चिता जलाने के लिए लोग लकड़ी का खर्च स्वयं ही उठाते हैं, लेकिन इस श्मशान स्थल पर संस्था की ओर से दो कार्मिक नियुक्त कर रखे हैं। इनमें चौकीदार एवं दूसरा मंदिर पर सेवा-पूजा का काम करता है। इनकी वेतन समेत अन्य विकास कार्यों पर यहां हर माह करीब 50 हजार रुपए खर्च होते हैं। खास बात यह है कि शहर के इस इकलौते मोक्ष धाम में विद्युत शव दाह गृह की सुविधा भी उपलब्ध है। सतातन धर्म सभा ने इस श्मशान गृह को गोद लिया है। ऐसे में यहां निरंतर विकास कार्य कराए जा रहे हैं। अब रंगाई-पुताई का कार्य किया जा रहा है। इसके बाद यहां घास लगाने के साथ फूलदार पौधे लगाए जाएंगे। इसका स्वरूप ऐसा निखारा जा रहा है कि यह श्मशान कम और पार्क ज्यादा लगे। मोक्षधाम परिसर में बने मंदिर पर हर वर्ष अन्नकूट प्रसादी और पौषबड़ा जैसे कार्यक्रम होते हैं।
श्यामसुंदर शर्मा, मैनेजर, कुहेर गेट मोक्षधाम
श्यामसुंदर शर्मा, मैनेजर, कुहेर गेट मोक्षधाम