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भरतपुर

करीब 600 वर्ष से फसल कटाई से पहले परंपरा निभा रहे खुटैलपट्टी के किसान

-फसल काटने से पूर्व हटीपा बाबा की समधि पर चढ़ाते है बाली, धूलेंडी को मेला का आयोजन, आज भी शंख बजाने से ओलों की बारिश रुक जाती है।

भरतपुरMar 25, 2021 / 06:24 pm

Meghshyam Parashar

करीब 600 वर्ष से फसल कटाई से पहले परंपरा निभा रहे खुटैलपट्टी के किसान

करीब 600 वर्ष से फसल कटाई से पहले परंपरा निभा रहे खुटैलपट्टी के किसान

भरतपुर/सौंख. रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाय पर वचन न जाई। भगवान कृष्ण की नगर में रघुकुल जुड़ी इस परंपरा का सामान्य से किसान पिछले 600 वर्षों से निभा रहे है। एक संत को दिए वचन को पूरा करने के लिए आज भी खुटैलपट्टी के किसान खेतों में हंसिया चलाकर सबसे पहले संत के मंदिर में गेहंू की बाली अर्पित करते है। इसके बाद फसल की कटान शुरू होती है। 365 गांवों के किसान सात पीढिय़ों से यह परंपरा निभा रहे है।
कस्बा के निकट गोवर्धन तहसील का गांव हटीपा, जहां के शंकेश्वर महादेव मंदिर पर 600 वर्ष पूर्व निवासी करने वाले नागा संत हटीपा से जुड़ी रोचक किवदंती है। ग्रामीणों के अनुसार तक एक नागा संत हटीपा बाबा इस स्थान पर आए। उस समय यहां घना वन था। उन्होनें यहां शंकेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की और यहीं पर पूजा करने आते थे और संत हटीपा का आशीर्वाद लेते थे। उस समय शंकेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर 36 एकड़ भूमि भी थी। इस पर संत हटीपा के शिष्य खेता व बागवानी करते थे। किवदंती के अनुसार महाशिवरात्रि के पर्व पर खुटैलपट्टी से कुछ लोग संत हटीपा और उनके शिष्य महीपाल व धूनीपाल के साथ गांग स्नान करने और शंकेश्वर महादेव पर जलभिषेक के लिए गंगाजल लेने गए। इसी बीच खुटैलपट्टी में मौसम खराब हो गया। हटीपा बाबा ने यह बात साथ गए लोगों को बताई तो सभी लोग खेतों में खड़ी फसल को लेकर चिंतित हो गए। उन्होंने बाबा से कोई समाधान निकालने को कहा। इस बाबा ने सभी से शंकेश्वर महादेव पर सब कुछ छोड़ देने की बात कही और खुद तप पर बैठ गए। करीब एक सप्ताह बाद सभी लोग घरों से लौटे लेकिन आने पर पता चला कि क्षेत्र में जबरदस्त मूसलाधार बारिश हुई तथा ओले भी पड़े लेकिन सारी बारिश शंकेश्वर महादेव को नामित 36 एकड़ के खेतों में हुई। अन्य किसानों के खेतों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। इस पर किसानों ने सभा बुलाकर शंकेश्वर महादेव की फसल की भरपाई के लिए अपनी फसल में से कुछ अंश हटीपा को दिया। साथ ही हर वर्ष कुछ न कुछ अंश देने की बात भी कही। तक से हर वर्ष किसान हटीपा बाबा को अपनी फसल का कुछ अंश देते रहे। उनके समाधि लेने के बाद आज भ यह परंपरा जीवित है।
आज भी महादेव के नाम पर है 22 एकड़ का रकबा

उनके शिष्यों के वंशज आज भी संत की समाधि के पास बसे हटीपा गांव में निवास करते है। प्रतिवर्ष धुलेंडी के दिन हटीपा बाबा की समाधि पर मेला लगता है। किसान खेतों में हंसिया डालने से पहले धूलेंडी के दिन शंकेश्वर महादेव और हटीपा बाबा की समाधि पर गेहंू की बाली चढ़ाते है। इस बारे में गांव के बाबा प्रेमपाल बताया कि इस समय गांव में खैमा, मुन्ना, विजयपाल, धनेश, गोपाल, सुरेंद्र, पप्पू, सोनू आदि समेत करीब 12 परिवार रहते है। इनमें से कुछ परिवार हटीपा बाबा की सेवा में लगे हुए हैं। श्रवणी केवल वही लेते है जो बाबा की पूजा अर्चना में लगे हुए है। हटीपा बाबा की समाधि पर सेवा में लगे बाबा बलवीर सिंह ने बताया कि होली के बाद फसल की कटाई के बाद गांव के कुछ परिवार श्रावणी लेने गांव-गांव जाते हैं। किसान दो से पांच किलो तक गेहूं श्रावणी के रूप में देते है। शंकेश्वर महादेव का नाम आज भी 22 एकड़ का रकबा है।

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