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भरतपुर

जेब में नहीं थे पैसे, फॉर्म भरने से किया मना तो चाय वाले से उधार लेकर दी रिश्वत

-जिले के सबसे बड़े जनाना अस्पताल में भ्रष्टाचार की दो दर्दनाक कहानियां, बड़ा सवाल ये…आखिर मेडिकल कॉलेज प्रशासन, जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधि चुप क्यों ?

भरतपुरAug 17, 2021 / 01:51 pm

Meghshyam Parashar

जेब में नहीं थे पैसे, फॉर्म भरने से किया मना तो चाय वाले से उधार लेकर दी रिश्वत

जेब में नहीं थे पैसे, फॉर्म भरने से किया मना तो चाय वाले से उधार लेकर दी रिश्वत

-हाल में ही आरबीएम अस्पताल में ऑपरेशन के नाम पर रिश्वत लेने के आरोप में पकड़े गए डॉ. अनिल गुप्ता का मामला प्रदेशभर में सुर्खियों में छाया रहा, लेकिन असल में एक और सच यह है कि जिले के सबसे बड़े जनाना व संभाग के सबसे बड़े आरबीएम अस्पताल को भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है, यहां डॉक्टर ही नहीं अधीनस्थ कर्मचारी भी भ्रष्टाचार के रूप में मरीजों का खून चूसने में लगे हैं, ऐसी ही दो कहानियां पीडि़तों की जुबानी…
साहब…साढ़े तीन महीने से काट रहा हूं चक्कर, हर बार रिश्वत

भरतपुर. नदबई के लखनपुर थाने के गांव सहायपुर निवासी कप्तान सिंह की पत्नी संजना को प्रसव के लिए 28 अप्रेल को जनाना अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दोनों ही दिव्यांग हैं। 29 अप्रेल को संजना ने बेटी को जन्म दिया। कप्तान सिंह ने बताया कि वह जैसे तैसे कर परिवार का गुजारा करता है। बीपीएल श्रेणी में आने के बाद भी अस्पताल में उस पर कोई तरस नहीं किया गया। बेटी के जन्म से पहले 520 रुपए के इंजेक्शन मंगवाए, लेकिन इंजेक्शन कोई काम नहीं आए। इसके बाद भी उन्हें वापस करने से इंकार कर दिया। बेटी के जन्म के तुरंत बाद महिला कर्मचारी ने दो हजार रुपए मांगे, जेब में पैसे नहीं थे तो चाय वाले एक हजार रुपए उधार लेकर उसे दिए। खटिया के लिए पैसे अलग से दिए। छुट्टी के कागज बनाने के एवज में 200 रुपए दिए। सात जुलाई को पांच किलो घी लेने व योजना के फॉर्म आदि जमा कराने समेत अन्य कार्य से आया तो फॉर्म लेने वाले बाबू ने 200 रुपए लिए। बात यहां पर ही खत्म नहीं होती, करीब साढ़े तीन महीने के अंदर छह-सात चक्कर काट चुका हूं। कोई संतोषजनक जवाब ही नहीं देता है। जब 10 अगस्त को शिकायत करने की चेतावनी दी तो एक महिला नर्स ने कहा कि जिसे शिकायत करनी है जाकर कर दो। जिन्हें शिकायत करने जाआगो वो क्या ईमानदारी का चोला ओढ़कर घूम रहे हैं। हम तो फिर भी कम लेते हैं वो तो मोटा माल मारते हैं।

फॉर्म लिखा कुछ और था कुछ, अब अटका बिटिया का लाभ

भरतपुर. नगर निगम के पीछे रसाला मोहल्ला निवासी सतीश की पत्नी शशि को नौ अगस्त को शाम चार बजे जनाना अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल कर्मचारी ने फॉर्म पर बीबीए, मतलब अस्पताल परिसर से बाहर प्रसव हुआ लिख दिया। भर्ती कराने के बाद नर्स ने बेटी के जन्म पर 500 रुपए मिठाई के लिए। 100 रुपए फॉर्म भरने के लिए गए। सुबह डिस्चार्ज टिकट बनाते समय रुपए मांगे गए। डिस्चार्ज टिकट पर पहले दोपहर दो बजकर 20 मिनट लिखा गया, फिर 4.15 लिख दिया। अस्पताल प्रशासन ने प्रसव होना अस्पताल परिसर से बाहर बताया है। इससे राजश्री या अन्य किसी योजना में लाभ नहीं मिल पाएगा। जितना कमाता हूं उतना परिवार के भरण पोषण पर व्यय हो जाता है। ऐेसे में पूरे परिवार का भी ध्यान रखना है। बेटी का जन्म हुआ है तो वह योजना का लाभ पाने के लिए हकदार है। अब अस्पताल में चक्कर काट रहा हूं, लेकिन कोई सही तरीके से जवाब नहीं दे रहा है। एक ने कहा कि जिसने यह लिखा था वो ही इसे सही कर सकता है। कह सभी रहे हैं कि यह सही हो जाएगा, लेकिन कर कोई नहीं रहा है। लगता है कि अब दुबारा से रुपए मांगने की कवायद हो रहा है। मुझे तो मेरा काम होना चाहिए। जब एक कर्मचारी से कहा कि अगर काम नहीं कर सकते तो मुझे मना कर दो। मैं चिकित्सा मंत्री सुभाषजी से जाकर मिलता हूं और उन्हें अस्पताल में हो रहे भ्रष्टाचार के बारे में बताता हूं तो उसने भी अस्पताल से बाहर जाने को कह दिया।
कमीशन के फेर में उलझा हुआ है गरीबों का इलाज

आरबीएम हो या जनाना अस्पताल, यहां कमीशन के फेर में गरीबों का इलाज उलझा हुआ है। दोनों ही अस्पतालों में जांच के नाम पर कमीशन, एंबुलेंस, मेडिकल से दवाइयां आदि के लिए दलाल सक्रिय हैं। डॉक्टरों के घर पर मरीज को बुलाकर ऑपरेशन कराने व खुद के निजी हॉस्पिटल में इलाज व ऑपरेशन करने के साथ ही दूसरे निजी हॉस्पिटलों में ऑपरेशन के नाम पर मोटा कमीशन लेने के मामले सामने आते रहे हैं। करीब आठ महीने पहले पत्रिका की मुहिम से ही एक महिला को ऑपरेशन के लिए ली गई राशि वापस कराई गई थी। हालांकि जांच के नाम पर आरबीएम अस्पताल के प्रभारी ने इतिश्री कर दी थी।
जिनके खिलाफ जांच, उन्हें ही जांच का जिम्मा

यह सही है कि अब तक अस्पतालों में जितने भी मामले सामने आए हैं, उन सभी में क्लीन चिट मिलती रही है। क्योंकि इसका सबसे बड़ा साफ सा कारण है कि जांच का जिम्मा भी उन्हें ही दिया जाता है तो या तो वो दोषी होते हैं या फिर दोषियों के साथी। ऐसे में कैसे निष्पक्ष जांच की कल्पना की जा सकती है। अब जरूरी है कि भ्रष्ट तंत्र को सुधारने के लिए एक बार सख्ती की जाए। आमजन को चाहिए कि अगर वहां जिम्मेदार अधिकारी उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लेते हैं तो तुरंत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से शिकायत करनी चाहिए।

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