कभी चंबल इंटैक वैल पर पंप खराब हो जाने, तो कभी ट्रांसमिशन लाइन में लीकेज हो जाने के कारण हर महीने 3-4 दिन जलापूर्ति बाधित हो जाती है। वहीं महीने में कई बार कई इलाकों में राइजिंग पाइप लाइन आदि लीकेज हो जाने की वजह से भी उपभोक्ताओं की जलापूर्ति बाधित रहती है। इसके चलते लाखों लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ता है।
इतना ही नहीं योजना के तहत भरतपुर, रूपवास, उच्चैन, डीग, कुम्हेर, नगर, कामां और पहाड़ी तहसील के शहरी क्षेत्र एवं इन तहसीलों के 945 गांवों में जलापूर्ति करना तय था, लेकिन एक दशक में अभी तक मात्र 600 गांवों में ही पेयजल आपूर्ति सुचारू की जा सकी है, जबकि 345 गांवों में अभी तक पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की जा सकी है। चंबल पेयजल से वंचित रह गए गांवों में भरतपुर सहित उच्चैन, रूपवास, कामां और पहाड़ी तहसील के गांव शामिल हैं।
बता दें कि चंबल-धौलपुर-भरतपुर पेयजल परियोजना लाखों लोगों के लिए जीवनरेखा है। लेकिन विभागीय लापरवाही और सुस्ती के कारण यह परियोजना अपने उद्देश्य में विफल होती नजर आ रही है। समय रहते सुधार नहीं किया गया तो स्थिति और बदतर हो सकती है। सरकार और विभाग को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि आमजन को राहत मिल सके।
कहां चूक रहा जलदाय विभाग?
चंबल नदी से पानी भरतपुर और डीग जिलों तक लाने के लिए एक विशाल इंटेक वेल, 6 पंप, और ट्रांसमिशन लाइन बिछाई गई। भरतपुर में 220 एमएलडी का रॉ रिजर्व वायर टैंक और 110 एमएलडी का वाटर फिल्टर प्लांट भी स्थापित किया गया। इसके बावजूद हर महीने जलापूर्ति बाधित होना विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है। 220 एमएलडी क्षमता के रिजर्व वायर टैंक में पर्याप्त पानी उपलब्ध होने के बावजूद लीकेज या पंप खराबी के कारण जलापूर्ति ठप हो जाती है। विभाग की लापरवाही से रॉ वाटर पर्याप्त मात्रा में एकत्रित नहीं हो रहा है, और न ही पर्याप्त मात्रा में पानी को फिल्टर किया जा रहा है।
विभाग की कार्यशैली से स्पष्ट है कि समस्या की जड़ लापरवाही और प्रॉपर मॉनिटरिंग का अभाव है। 220 एमएलडी के रिजर्व वायर से पर्याप्त पानी की आपूर्ति संभव है। लेकिन लीकेज और पंप खराब होने के नाम पर जलापूर्ति रोक दी जाती है। इस परियोजना के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन जनता को अब भी पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
पुराने पंप, धीमी रफ्तार से डिस्चार्ज
चंबल परियोजना के शुरूआती दिनों में लगाए गए पंप अब पुराने हो चुके हैं। पानी डिस्चार्ज करने की क्षमता घट गई है। चार पंपों के जरिए रोजाना 110 एमएलडी पानी भरतपुर भेजा जाना था, लेकिन अब मुश्किल से 70-75 एमएलडी पानी ही भेजा जा रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि 2023 में इन पंपों को बदलने के लिए 10 करोड़ रुपये की स्वीकृति जारी की गई थी। अक्टूबर 2023 तक नए पंप लगाए जाने थे। लेकिन विभाग ने अभी तक इस पर काम नहीं किया है। नतीजतन, भरतपुर और डीग के लोगों को कम पानी में गुजारा करना पड़ रहा है।
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345 गांवों को एक दशक से इंतजार
योजना के तहत भरतपुर और डीग तहसीलों के 945 गांवों और शहरी इलाकों को पानी की आपूर्ति की जानी थी। इसके लिए रोजाना 112 एमएलडी पानी की जरुरत होती है, लेकिन अब तक शहरों के अलावा सिर्फ 600 गांवों को ही इस योजना का लाभ मिल पाया है। बाकी 345 गांवों के लोग अब भी चंबल के पानी का इंतजार कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कई किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर हैं। जो क्षेत्र पहले से जुड़े हुए हैं, वहां भी जलापूर्ति नियमित नहीं हो रही है। जब 345 और गांवों को जोड़ा जाएगा, तब 70 एमएलडी पानी के बजाय 112 एमएलडी पानी की आपूर्ति करनी होगी, ऐसे में हालात और खराब होने की आशंका है।
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चंबल से भरतपुर तक एक और नई ट्रांसमिशन लाइन बिछाने की प्लानिंग
चंबल इंटैक वैल पर 25 दिसंबर तक नए पंप स्थापित करवा दिए जाएंगे, यानी दिसंबर के अंत तक पेयजल आपूर्ति सुचारू कर दी जाएगी। फिर पानी की कोई कमी नहीं रहेगी। रही बात रिजर्व वाटर की तो यह पानी आपातकाल के लिए रखा जाता है। वैसे जल्द ही चंबल से भरतपुर तक एक और नई ट्रांसमिशन लाइन बिछाने की प्लानिंग चल रही है, ताकि एक लाइन में कोई लीकेज हो तो दूसरी से जलापूर्ति संभव हो सके।–हरिकिशन अग्रवाल, एसई, चंबल-धौलपुर-भरतपुर पेयजल परियोजना, भरतपुर