यह है नियम नियमों की बात करें तो किसी भी अस्पताल, अभ्यारण्य, बर्ड सेंचुरी व शिक्षण संस्थानों के आस-पास तीव्र कोलाहल मचाना ध्वनि प्रदूषण नियमों के खिलाफ है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक ध्वनि प्रदर्शन की सीमाएं निर्धारित कर दी गई। ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए साइलेंस जोन क्षेत्रों में आवाज का स्तर 50 डेसिबल और 40 डेसिबल से अधिक नहीं हो सकता। दूसरी ओर औद्योगिक क्षेत्रों में ध्वनि का स्तर दिन में 75 डेसिबल और रात में 70 डेसिबल से अधिक नहीं हो सकता। व्यावसायिक क्षेत्रों में यह दिन में 65 डेसिबल और रात में 55 डेसिबल तय है। आवासीय क्षेत्रों में यह दिन के दौरान 55 डेसीबल और रात में 45 डेसिबल है।
एक्सपर्ट: घौंसलों से गिर जाते हैं अंडे व चूजे एक्सपर्ट पक्षीविद् दाऊदयाल शर्मा ने बताया कि इस समय केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान में पेंटेड़ स्टॉर्क सहित अन्य कई प्रजाति के पक्षियों की ब्रिडिंग चल रही है। इनको रात में शांति की आवश्यकता होती है। जैसे ही रात को आतिशबाजी का धमाका होता है तो ये विचलित होते हैं। इससे इनके चूजे व अंडे घौंसलो से गिर जाते हैं। धमाकों के कारण इनकी प्रगति भी रुक जाती है। इसका पक्षियों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इन दिनों विदेशों से डक्स आए हैं। वह रात को शान्ति प्रिय होते हैं। जब अतिशबाजी होती है तो वह उड़ान भरते है तो वह चोटिल हो जाते हैं।
दाऊदयाल शर्मा, पक्षी विद्
असल कारण ये… सुप्रीम कोर्ट कम कर चुका पाबंदियां सुप्रीम कोर्ट वन क्षेत्र और अभयारण्यों के आसपास रहने वालों एवं होटल आदि चलाने वालों के लिए राहत दे चुका है। कोर्ट ने वन संरक्षित क्षेत्र, वन्यजीव अभयारण्य व नेशनल पार्क के न्यूनतम 1 किमी के पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) में निर्माण पर पाबंदी का जून 2022 का आदेश वापस ले लिया है। अब इन क्षेत्रों में निर्धारित या प्रस्तावित ईएसजेड ही प्रतिबंधित है। सुप्रीम कोर्ट आदेश में कह चुका है कि जानवरों के रिहायशी इलाकों में आ जाने की घटनाओं को देखते हुए यह फैसला बदला है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि कहीं मौजूदा इको सेंसेटिव जोन का दायरा एक किमी से कम निर्धारित है या कम प्रस्तावित है तो वह सीमा ही प्रभावी रहेगी।
बहुत प्रदूषण हो रहा, पक्षी विचलित -ये इको सेंसेटिव जॉन है। हम प्रशासन के साथ है। इसको लेकर प्रशासन कोई कार्रवाई करे। मैरिज होम व होटलों में आतिशबाजी व म्यूजिकल सिस्टम के संबंध में गाइडलाइन है। प्रदूषण बहुत हो रहा है। इससे पक्षी भी विचलित होते हैं। इनकी गतिविधि पर रोक लगनी चाहिए।
मानस सिंह, निदेशक केवलादेव राष्ट्रीय उद्याान भरतपुर