ऐसी मान्यता है कि काशी और प्रयाग के मध्य सीतामढ़ी में ही महर्षि वाल्मिकी की तपोस्थली और माता सीता का समाहित स्थल है। इसी जगह पर महर्षि वाल्मिकी आश्रम बनाकर रहते थे। भगवान राम ने जब माता सीता का परित्याग कर दिया तो माता सीता भी यहीं आकर महर्षि वाल्मिकी के आश्रम में रहा करती थीं। अषाढ़ की अष्टमी के दिन लव और कुश का जन्म भी यहीं हुआ था, ऐसी मान्यता है। इसके अलावा जब भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया था तो यज्ञ के घोड़े को लव-कश ने यहीं पकड़कर बांध लिया था। बजरंग बली को लव और कुश ने यहीं बंधक बनाया था। इसी जगह माता सीता धरती में समा गयी थीं।
यह मंदिर इलाहाबाद और वाराणसी के मध्य स्थित जंगीगंज बाज़ार से 11 किलोमीटर गंगा के किनारे स्थित है । वाराणसी इलाहाबाद एनएच- 2 पर जंगीगंज बाजार के रास्ते यहां पहुंच सकते हैं । वाराणसी से इस जगह की दूरी 75 किलोमीटर जबकि इलाहाबाद से दूरी 70 किलोमीटर है । नजदीकी रेलवे स्टेशन भदोही का ज्ञानपुर रोड है, जो वाराणसी-प्रयागराज रूट पर पड़ता है, इस रूट की कई महत्वपूर्ण गाड़ियों का यहां ठहराव भी है, जबकि नजदीकी हवाई अड्डा भी वाराणसी और इलाहाबाद में है ।
सीतामढ़ी जाकर दर्शन करने के बाद वहां ठहरने के लिये मंदिर ट्रस्ट की ओर से वहीं एक आलीशान होटल भी बनाया गया है, जहां सामान्य दर पर एसी कमरे भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा भदोही शहर में कई होटल हैं जहां ठहरा जा सकता है। वाराणसी या प्रयागराज में रुककर भी निजी वाहन या बस से दर्शन कर वापस लौटा जा सकता है।