वैसे तो भारत दिन ब दिन विकास की नई इबारत लिख रहा है। जैसे जैसे देश का लिटरेसी रेट बढ़ रहा है, लोग खुद ही कई रूढ़ी वादी चीजों को त्याग रहे हैं। बावजूद इसके बैतूल में आस्था के नाम पर अंधविश्वास के चलते लोग अपनी जान से ज्यादा चाहने वाले बच्चों को भी कष्ट देने में पीछे नहीं हट रहे। जिले के भैंसदेही में आस्था और मान्यता के नाम पर मासूम बच्चों न सिर्फ पालने में लेटाकर नदी पार कराई जाती है, बल्कि उन्हें नदी में डुबकी भी दिलाई जाती है। इनमें लगभग सभी बच्चे तकलीफ के कारण रोते – बिलखते नजर आते हैं। खास बात ये है कि, नवजात बच्चों को ये पीड़ा कोई और नहीं बल्कि उन्ही के माता – पिता को देनी होती है। जबकि, नदी के प्रदूषित पानी में डुबोने से बच्चों को निमोनिया या अन्य किसी जानलेवा बीमारी के होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
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इस तरह पाले में लेटाकर पार कराई जाती है नदी
स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है कि, भैंसदेही से गुजरने वाली पूर्णा नदी से संतान हीन दंपत्तियों को यहां आने पर संतान की प्राप्ति हो जाती है, इसलिए हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर पूर्णा नदी के किनारे एक बड़ा मेला आयोजित होता है, जहां बड़ी संख्या में लोग बैतूल और उसके आसपास से यहां आते हैं। इनमें खासतौर पर वो लोग होते हैं, जिनकी संतान नहीं होती या यहां मन्नत मांगने के बाद संतान की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए पहले दंपत्ति को नदी के पास आकर संतान प्राप्ति की कामना करनी होती है और जिन्हें संतान प्राप्ति हो जाती है वो यहां अपने बच्चे को लाते हैं और नदी में भगत के माध्यम से पूजा कराकर बच्चे को पालने में डालकर नदी पार कराते हैं। कई बार पालने में पानी भी भर जाता है और बच्चा गीला भी हो जाता है।
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तांत्रिक खुद को बताते है देवी का रूप
वैसे तो अपनी मन्नत मानने के लिए दूर-दूर से लोग आते है खास तौर पर वे लोग ज्यादा आते है जिन्हें संतान नहीं होती उनका मानना है कि, यहां मन्नत मांगने वाले को संतान की प्राप्ति हो जाती है। इस पूरे मामले में मुख्य भूमिका निभाने वाले तांत्रिक जो लोगों को संतान दिलाने की मन्नत करवाते है, वे खुद को देवी का रूप भी बताते है। उनका कहना है कि, वो खुद अम्बा देवी हैं और बच्चा दिलाने के लिए नृत्य करते हैं, तब कहीं जाकर दपत्ति को बच्चा होता है। इसके लिए उन्हें लम्बी साधना करनी पड़ती है।
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ये हैं जानकारों का मानना
दरअसल, इस नदी के बारे में जानकारों का मानना है कि ये चंद्र पुत्री है और यहां के राजा के पास अठासी हजार ऋषि मुनि आये थे और उन्होंने राजा से दुग्ध के साथ आहार का दान मांगा था। जिसको लेकर राजा ने भगवान शंकर की तपस्या की थी और उन्हें भगवान ने वरदान में गाय के रूप में पूर्णा दी थी और वे भैंसदेही के काशी तालाब में छिप गई थी और उनका यही से उदगम हुआ है। जैसा नाम है वैसा ही काम है जो भी आये उसकी मन्नत पूरी हो जाये।