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विदेशी खरपतवार ने बढ़ाई सतपुड़ा जलाशय की मुश्किलें, नहीं सचेत हुए तो सूख जाएगा तालाब

सतपुड़ा जलाशय के ६० प्रतिशत क्षेत्र में फैल गई है जलकुंभी

बेतुलOct 26, 2018 / 12:08 pm

pradeep sahu

विदेशी खरपतवार ने बढ़ाई सतपुड़ा जलाशय की मुश्किलें, नहीं सचेत हुए तो सूख जाएगा तालाब

सारनी. साठ के दशक से नगरीय क्षेत्र की जीवनदायनी तवा नदी पर बने सतपुड़ा जलाशय अपने अस्तित्व को खोने लगा है। 2875 एकड़ में फैले सतपुड़ा जलाशय का 60 प्रतिशत भाग अक्टूबर माह में ही विदेशी खरपतवार से पट गया है। अब भी नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी। जलाशय को बचाने का एक मात्र विकल्प सामूहिक प्रबंधन है। सबकी सहभागीता सुनिश्चित नहीं हुई तो जलाशय को विदेशी खरपतवार से बचा पाना मुश्किल हो जाएगा। यह संकेत खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर (डीडब्ल्यूआर) के डॉ. सुशील कुमार और डॉ. वीके चौधरी द्वारा दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि जिस तेजी से जलाशय में खरपतवार बढ़ रही है। उससे यह कहना गलत नहीं होगा की स्थिति बेहद चिंताजनक है। इसके निराकरण के लिए सभी उपाय करने पड़ सकते हैं। फिलहाल ग्रासकार्प, कॉमनकार्प, मैक्निकल, मैनुअल रिमुअल और डेम मॉनीटरिंग जरूरी है। इसके बाद भी खरपतवार नष्ट नहीं होती है तो आखिरी उपाय कैमिकल ही हो सकता है। गौरतलब है कि मंगलवार और बुधवार को डीडब्ल्यूआर के दो सदस्यीय दल द्वारा सतपुड़ा जलाशय में पहुंचने वाले पानी के प्रमुख स्त्रोत, जलाशय के विभिन्न हिस्सों का निरीक्षण किया। जहां पर देखा गया कि बड़ी मात्रा में मिट्टी, पत्थर के कण और शहरी नालों का पानी पहुंचता है। जिसमें पोषकतत्व अधिक पाए जाते हैं। इसी से करीब आधा दर्जन प्रजाति की खरपतवार तेजी से फैल रही है।
सामने आएंगे दुष्परिणाम- जलाशय में तेजी से फैल रही खरपतवार के दुष्परिणाम गर्मी के दिनों में सामने आएंगे। दरअसल जलकुंभी तेजी से फैल रही है और यह पानी का वाष्पीकरण 7 गुना तेजी से करेगी। ऊपर से इस वर्ष अल्पवर्षा हुई है। जलाशय में पहाड़ी नदियों से मिट्टी, पत्थर के कण, शहरी नालों का मलबा और सतपुड़ा जलाशय की राख पहुंचने से क्षमता घटकर 60 एमसीएम तक पहुंच गई है। निर्माण के समय जलाशय की क्षमता 110 एमसीएम थी। वर्ष 2008 के सर्वे में 75 एमसीएम रह गई थी। इसलिए गर्मी के दिनों में पानी की किल्लत से इंकार नहीं किया जा सकता।
क्या है जलीय खरपतवार- जलकुंभी जिसे वाटर हाइसिंथ कहते हैं। इसे समुद्र सोख भी कहा जाता है। यह विदेशी खरपतवार है। 1855 में कोलकत्ता में पाई गई। इसके बाद से यह देश भर के जलाशयों में तेजी से फैल रही है। जिस जलाशय में जलकुंभी है। उस जलाशय के पानी का वाष्पीकरण 7 गुना तेजी से होता है। दरअसल जलकुंभी में 90 प्रतिशत पानी होता है। इससे पानी का वाष्पीकरण करने में सहायक है। छोटे तालाबों में यदि जलकुंभी फैल जाए तो उसे बहुत तेजी से सूखा देती है। वहीं साल्वीनिया मोलेस्टा जिसे चाइजि झालर भी कहते हैं। साउथ इंडिया में पाई जाने वाली इस खरपतवार के लिए सारनी क्षेत्र का मौसम उपयुक्त है। यह खरपतवार कुछ ही दिनों में जलाशय के पानी के ऊपर खेल मैदान की घास की तरह फैल जाती है। सतपुड़ा जलाशय में तीसरी सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली खरपतवार हाइड्रा वर्टिसीलाटा है। यह पानी के भीतर पाई जाती है। इसके अलावा टाइफा समेत अन्य जलीय खरपतवार सतपुड़ा जलाशय में तेजी से फैल रही है।
बन सकती है खाद – डीडब्ल्यूआर के शोधकर्ता डॉ सुशील कुमार, डॉ. वीके चौधरी बताते हैं कि जलाशय से निकलने वाली खरपतवार से एक लाख मीट्रिक टन खाद बनाई जा सकती है। यह खेतों की उर्वकता बढ़ाने में सहायक है। इसके लिए प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। इस खाद का उपयोग नर्सरी, घरों के बगीचे, कृषि अनुसंधान केंद्र, वन विभाग द्वारा किया जा सकता है। केंचुआ खाद बनाने के लिए यह जलीय खरपवार सबसे उपयोगी है। खाद बनाने मुफ्त प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है।

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