बेमेतरा

साल में तीन बार रंग व स्वरूप बदलता है ग्राम जौंग का प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग

11वीं शताब्दी के फणी नागवंशी राजाओं ने बनवाया था मंदिर, बेमेतरा जिला ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में है इस मंदिर की पहचान

बेमेतराAug 05, 2019 / 12:36 am

Laxmi Narayan Dewangan

साल में तीन बार रंग व स्वरूप बदलता है ग्राम जौंग का प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग

बेमेतरा . साल में तीन बार रंग बदलने वाले जौंग के शिव मंदिर में सावन माह में हर सोमवार को लोग अभिषेक करने के लिए ग्राम जौंग के अलावा राज्यभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। शिवनाथ नदी के किनारे में शिव जी स्वंयभू शिवलिंग के रूप में विराजित हैं। जो प्रत्येक चार माह में आकार व रंग बदलते रहता है। जिसके कारण इस मंदिर की पहचान सिर्फ बेमेतरा जिला ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में है। नेशनल हाइवे के किनारे एक किलोमीटर दूर स्थित शिव मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।
शिवनाथ में बाढ़ आने के बाद भी नहीं डूबा शिवलिंग
बताना होगा कि ग्राम जौंग में 11 वीं शताब्दी के फणी नागवंशी कालीन मंदिर के अलावा प्राचीन प्रतिमाएं व शिलालेख भी है। मान्यता है कि शिवनाथ में बाढ़ आने के बाद भी मंदिर का शिवलिंग आज तक नहीं डूबा है। गांव के बुजुर्गों ने भी कभी भी बाढ़ का पानी मंदिर के चौखट तक आते नहीं देखा है। जानकर बताते हैं कि मंदिर का निर्माण करीब 7 सौ साल पुराना है। मंदिर का जीर्णोद्धार कुछ साल पहले किया गया है। गांव के दौलत राम साहू ने बताया कि मंदिर में महाशिवरात्रि के दौरान मेला का आयोजन किया जाता है। सावन में शिव जी का विशेष अभिषेक किया जाता है। मंदिर के आसपास पुरात्व महत्व की अनेक प्रतिमाएं हैं। प्रागंण में कई समाज ने मंदिर का निर्माण कराया है।
मंदिर के आसपास व तालाब की खुदाई में निकलती है प्रतिमाएं व शिलालेख
गांव के बुजुर्ग सीताराम साहू, दौलत राम साहू ने बताया कि गांव में 10 साल पहले तालाब की खुदाई की गई थी। जिसमें काला पत्थर से बनी प्रतिमाएं मिली थी। जिसे तत्कालीन दुर्ग जिला प्रशासन को सौंपा गया था। इसके आलावा कई प्रतिमाओं को सुरक्षित ढंग से मंदिर परिसर में रखवाया गया था। बिसालराम साहू, रामकु मार सेन, मन्नू, थानुराम ने बताया कि मंदिर में सावन में अभिषेक करने के लिए उनके गांव के अलावा कुरूद, झलमला, बेेमेतरा, राका, पथर्रा, जीया व अन्य गावों के लोग भी पहुंचते हैं। अंचल के अलावा दिगर जिलों के भक्त भी सावन में दर्शन-पूजन करने आते हैं।
पुरातात्विक संपदा के संरक्षण के लिए प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान
सरपंच अश्वनी कुमार साहू ने बताया कि मंदिर प्रागण में साल में दो बार मेला लगता है। सावन और महाशिवरात्रि में लगने वाले मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि शासन-प्रशासन द्वारा जिले के इतिहास को समेटे इस मंदिर के रखरखाव व प्राचीन महत्व की संपदा के संरक्षण के लिए अब तक किसी तरह का प्रयास नहीं किया गया है। ग्रामीणों द्वारा मंदिर का जीर्णेधार कराया गया था। साथ ही देखरेख भी किया जाता है। जानकार मानतेे हैं कि स्थल के संरक्षण के लिए प्रशासन को भी सामने आना होगा, जिससे जिले की महत्वपूर्ण संपदा बनी रहे।
तीन साल में मंदिर के करीब नहीं बन सका कक्ष, जरूरी है सुरक्षा
पुरात्व महत्व को देखते हुए फरवरी 2016 के दौरान पुराने मंदिर के आसपास के करीब 2 किलोमीटर की परिधि में पुरातात्विक ख्ुादाई के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति दी जा चुकी है। खुदाई के लिए आदेश जारी हुए तीन साल बीत जाने के बाद भी आज तक फंड के आभाव में ख्ुादाई का कार्य शुरू नहीं हो पाया है। ग्रामीणों ने बताया कि कई साल से इस मंदिर व आसपास में रखे हुए शिलालेख व प्रतिमाओं के संबंध में शासन-प्रशासन द्वारा कोई सुध नहीं ली गई है। खुले आसमान के नीचे स्थित पुरानी धरोहर खंडित होती जा रही है। कुछ प्रतिमाएं जमीन में धंसने लगी है। ग्राम जौंग में खुदाई के दौरान निकले शिलालेख को संजोने के लिए एक कक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव है। लेकिन खुदाई शुरू नहीं होने के कारण सभाकक्ष का काम शुरू नहीं हो पाया है। जिसे लेकर ग्रामीणो ं ने चिता जाहिर की है। ग्रामीण खुबीराम साहू व रोहित कुमार ने बताया कि मंदिर को सहेजने के लिए प्रशासन को कदम बढ़ाने की जरूरत है।
मौसम बदलने के साथ-साथ बदलता है शिवलिंग का रंग
ग्रामीणों ने बताया कि मौसम बदलने के साथ-साथ प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग भी अपना रंग बदलता है। बारिश के दिनों में काला व स्लेटी रंग होता है। शिवलिंग पूरी तरह चिकना रहता है। वहीं ठंड में काले रंग का हो जाता है। इसके बाद गर्मियों में शिवलिंग भूरा रंग का होने के साथ-साथ खुरदुरा नजर आता है। शिवलिंग में दरारें भी दिखती है। इस तरह साल में तीन बार शिवलिंग का स्वरूप बदलता है।

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