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खजुराहो काल से जुड़ा आंशिक छाप वाला अति प्राचीन शिवमंदिर नगर से 4 किलोमीटर दूर खैरागढ-राजनांदगांव मार्ग पर बसे ग्राम सहसपुर वर्तमान समय में शिवजी के प्राचीन मंदिर के कारण चर्चा में है। क्योंकि यहां का शिवमंदिर बहुत ही प्राचीन है। श्रद्धालु बताते हैं कि मंदिर की आर्किटेक्चर इतना सटीक है कि प्रतिदिन इस शिवलिंग का रंग-स्वरूप बदलता रहता है। लोगों के लिए यह कौतूहल बना हुआ है।
मंदिर का निर्माण नागवंशी शासकों ने कराया था यह प्राचीन मंदिर लगभग 13वीं से 14वीं सदी ईसवी के मध्य माना जाता है। जिसे तत्कालीन नागवंशी शासकों द्वारा निर्माण कराया गया है। तत्कालीन दौर में सहसपुर कुछ राजवंश के लिए एक छोटा गढ़ माना जाता रहा। इस कारण उस काल मे काफी मजबूत आधार-संरचना के साथ इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया।
प्राचीन शिव मंदिर खजुराहो काल के समय का होने के कारण उस काल का विशिष्ट छाप होने के कारण इसे छत्तीसगढ़ पुरातत्व व संस्कृति विभाग द्वारा राज्य स्मारक का दर्जा देकर संरक्षित किया गया है। आठ स्तम्भो पर आधरित ,मुख्य मंदिर का स्वरूप मण्डप, अंतराल व गर्भगृह में विभक्त है। जिसमे बाहरी दीवारों पर नक्काशी की गई है। पिछली भित्ति पर तीन मिथुन, षडभुजी नृतगणपति, सप्त अश्वरथ पर आसीन सूर्यदेव की प्रतिमा सहित कुछ जगहों पर खजुराहो स्वरूप आंशिक प्रतिमा भी है। वही अंदर गर्भगृह में शिवलिंग की प्राचीन प्रतिमा विराजमान है।
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ग्राम सहसपुर के आलावा नगर देवकर सहित आसपास के समस्त ग्रामीण इलाकों के शिवमंदिरों में भी शिवभक्तों व श्रद्धालुओं की स्थानीय स्तर पर खूब जमघट नज़र आ रही है। जिसमें अहम योगदान ग्राम धरोहर समिति सहसपुर के अध्यक्ष यशवंत सिंह ठाकुर, संरक्षक उपेंद्र हंस, व्यवस्थापक मोहन नेताम, संयोजक गन्नू सिंह ठाकुर, सचिव कृष्णा पाटिल, कोषाध्यक्ष शिवकुमार साहू, प्रचार मंत्री डेलू नागरे, बुधराम साहू, सक्रिय सदस्य मन्नू ठाकुर, तिजाऊ नेताम, सियाराम रात्रे, बलदेव सिंह राजपूत, घनश्याम ठाकुर, चूरामन पाटिल , सहित ग्रामवासी व पुरातत्व विभाग के द्वारा यह मंदिर का जुड़ा उधर का कार्य कराया जा रहा है।