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बेमेतरा

CG News: कुम्हारों को नहीं मिल रहा वोकल फार लोकल का लाभ, इस बार भी फिकी रहेगी दिवाली

CG News: बेमेतरा जिले में मिट्टी के दीया बनाने वाले कुंभकारों को उनकी मेहनत के अनुसार नहीं मिल रहा उनके सामानों की कीमत इसके चलते आने वाली पीढ़ी इस हुनर से दूर हो रहे हैं।

बेमेतराOct 26, 2024 / 05:57 pm

Shradha Jaiswal

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CG News: छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में मिट्टी के दीया बनाने वाले कुंभकारों को उनकी मेहनत के अनुसार नहीं मिल रहा उनके सामानों की कीमत इसके चलते आने वाली पीढ़ी इस हुनर से दूर हो रहे हैं। जिले में सैकड़ों कुम्हार परिवार मिट्टी के सामान बनाकर अपना व्यवसाय कई पीढ़ी से करते आ रहे हैं। वर्तमान में परंपरागत तरीके से काम करने वाले कुम्हारों के लिए इस काम को कर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है।
CG News: बता दें कि अंचल के ग्राम झाल, बीजाभाट, दाढ़ी, खंडसरा, थानखम्हरिया, ओटेबंन्द में कई परिवार आज भी मिट्टी के दीया व बर्तन बनाते आ रहे हैं। कुम्हारों के अनुसार जिस तरह से दूसरे रोजगार को आज काम करने का अवसर मिला है उस तरह की स्थिति उनके लिए नही बनी है। आज भी उनके सामने केवल सीजन में मिट्टी के पात्र बनाने का काम है। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले गांव-गांव में दिया बेचते थे। दिपावली में दीया के लिए लोग पहले से बुक कराते थे पर आज इस तरह की स्थिति नहीं है। हमें आज उनके काम को चाईनीज दीया व बिजली के बल्ब से भी भारी नुकसान हुआ है।
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CG News: नवीन बाजार में लगती है दुकानें, मांग कम, दाम कम

जिला मुख्यालय के नवीन बाजार में दीपावली त्यौहार के दौरान दिया, नांदी, ग्वालीन व मिट्टी के अन्य सामान बिक रहे हैं। दुकानदारों ने बताया कि चाईना व कलकत्ता से आये बर्तन दीया का दाम लोकल से पांच गुणा अधिक है पर चमक-धमक होने की वजह से उसकी मांग अधिक है। आसपास के कुम्हारो के बनाए हुए सामान की मांग व दाम दोनों कम है। बेचने वाले अशोक सिन्हा ने बताया कि दस रूपया में 8 से 10 नग दीया दे रहे हैं पर लेने वाले नहीं आते है।
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कुंभकारों को मिट्टी के दीए बनाने का लागत बढ़ते जा रहा है। दरअसल पांच साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से उन्हें माटी कला आयोग की ओर से उन्हें इलेक्ट्रॉनिक चाक दिए गए हैं वो काम का नहीं आ रहा है। अब मिटटी तक खरीद कर लेना पड़ता है । हालात ये है कि मिटटी से बर्तन दीया व मुर्ति बनाने के लिए नदी के किनारे मिट्टी, पैरा, राखड़ बाजार से खरीदना पड़ता है। पहले किसान उन्हें अपने खेतों की मिट्टी ले जाने देते थे। अब नहीं दे रहे हैं। किसान पराली यानी पैरा पहले आसानी से दे देते थे, आज किसान खेतों में ही पैरा( पराली) को जला रहे हैं।
इसके अलावा राख भी मिलना मुश्किल हो रहा है। बैसाखू ने बताया कि लोग अब चूल्हे की बजाय गैस जलाते हैं जिसके चलते कई प्रकार की परेशानियों का सामना कुंभकारों को करना पड़ रहा है और इन सब चीजों को इकट्ठा करने में खर्च भी ज्यादा आ रहा है। कई साल से कुम्हारों के हित के लिए कोई नई योजना नहीं आई है।
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कई परिवार संघर्ष कर रहे हैं बच्चे सीखना नहीं चाहते

कई कुंभकार परिवार आज भी इस परंपरा को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और अपने बच्चों को इस हुनर से जोड़ने का प्रयास कर रहे है। बच्चे भी इस हुनर को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सरकार की ओर से उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के चलते वह भी निराश है। गंगूराम चक्रधारी ने बताया कि बच्चे अब मिट्टी से सामान बनाने सीखना नहीं चाह रहे हैं। उषा कुम्हार बताती है पूरा परिवार मिट्टी का समान बनाने का काम करता है पर जिस तरह से आय होना चाहिए उस तरह का आय उनको नहीं मिल पाता है।
ह्यग्राम ओटेबंद के कुम्हारों ने बताया कि बाजार में लोकल कुम्हारों द्वारा बनाया गया दिया एक रूपया नग से बिकता है और दीगर क्षेत्र का दिया 5 रूपया नग से बिक रहा है। इससे अनुमान लगा सकते है कि लोकल दीया बेचने के लिए दुकानदार कम मुनाफा मिलने की वजह से नहीं लेते है और हम बेचते हैं तो बेचने से परिवार नहीं चला पाते हैं। इसकी वजह से लोकल दीया बाजार से गायब होते जा रहा है।
बाजार में बिकने वाला चाइनीज दीया के अच्छा दिखने की वजह से भी कुम्हारों का बाजार प्रभावित हुआ है। हालात ये हैं कि पर्यावरण को प्रभावित नहीं करने वाले दीए नहीं बिकते है। वहीं पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले चाइनीज दीए कम कीमत पर मिलते हैं जिसे लोग खरीदते हैं। जिसके चलते उनके दीए बिक नहीं पाते और उनकी मेहनत बेकार चली जाती है। दिपक कुंभकार ने बताया आज का युवा पीढ़ी इसी वजह से इस परंपरागत हुनर से दूर हो रहे हैं। वह नहीं चाहते इस हुनर में अपना समय बर्बाद करे। इसके बदले दूसरे कार्य में ध्यान दें जिसे उन्हें आर्थिक फायदा भी हो सके।

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