ब्यावर

राज ‘पथ पर बिखरा ‘विकास का ताना-बाना

ब्यावर स्थापना दिवस विशेष : औद्योगिक दृष्टि से भी बदली पहचानवादे हुए छलावे साबित : 1८४ साल के ब्यावर में करीब एक सदी तक तो विकास की दृष्टि से आगे बढ़ा लेकिन इसके बाद शुरू हुआ पतन जो अब तक अनवरत जारी

ब्यावरJan 31, 2020 / 12:02 pm

Bhagwat

राज ‘पथ पर बिखरा ‘विकास का ताना-बाना

ब्यावर. शहर को आबाद हुए 1८४ साल बीत चुके है। इन सालों में कई उतार चढ़ाव देखे। विकास की दृष्टि से शहर की आवश्यकताएं थी, वो पूरी नहीं हो सकी। वर्ष १९५६ में प्रदेश मे मेरवाड़ा-अजमेर स्टेट के विलय के बाद विकास को लेकर प्रदेश में नया खाका खींचा गया। लेकिन शहर विकास के पायदान से फिसलता ही चला गया। जिला स्तर के कार्यालय संचालित थे, समय दर समय उनका कार्य क्षेत्र सिमटता गया। शहर में विकास के नजरिए से नवीन सृजन की राह नहीं निकल सकी। प्रदेश के तेरहवां बड़ा शहर की दृष्टि से शहरवासियों ने कई सपने संजोए। वक्त के साथ ही राजनैतिक दलों की ओर से लाखों लोगों के सपनों को अमली जामा पहनाने के लिए किए गए वायदे छलावे बनकर रह गए। शहर की आबादी व क्षेत्रफल बढऩे के साथ ही औद्योगिक नगरी ने कई उतार चढ़ाव देखे। प्रदेश में वूलन की सबसे बड़ी मंडी के रुप में ब्यावर की पहचान रही। समय के साथ यह व्यापार कम होता गया। प्रदेश की सबसे बड़ी वूलन मंडी बीकानेर में विकसित हो गई। प्रदेश में कपड़ा व्यापार में भी ब्यावर की पहचान रही। लेकिन बाद में इस व्यापार में भी ब्यावर पिछड़ गया। भीलवाड़ा ने इसमें अपनी पहचान बना ली। बाद में ब्यावर में मिनरल उद्योग तेजी से बढ़ा। शहर सहित आस-पास के क्षेत्र में करीब आठ सौ यूनिट लगी। इस कारोबार के हब के रुप में इसकी पहचान बनी। बाद में इस उद्योग ने भी प्रदेश के अन्य हिस्सों के अलावा गुजरात में नए प्लांट लगने से इस कारोबार पर असर पड़ा। गौरतलब है कि 1956 में अजमेर के साथ ब्यावर का विलय भी राजस्थान में हो गया था। स्थानीय कुशल राजनीतिक नेतृत्व के अभाव व प्रशासनिक तंत्र की ढिलाई के चलते साल-दर-साल ब्यावर का ऐतिहासिक व आर्थिक गौरव गर्त की ओर बढ़ रहा है।कलस्टर माना पर विकास कुछ नहीं हुआ…मिनरल उद्योग का हब होने के नाते राजस्थान रिसर्जेंट के जयपुर में हुए आयोजन के बाद ब्यावर को मिनरल कलस्टर माना। मिनरल कलस्टर मानने के बावजूद यहां पर विकास के नजरिए से कुछ नहीं हो सका। मिनरल कलस्टर माने जाने के बाद इस उद्योग को बढ़ावा मिलने के साथ ही सुविधाएं बढऩे के सपने देखे। राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में मिनरल कलस्टर की घोषणा बनकर ही रह गई। जबकि कलस्टर के तहत कच्चे माल, नई तकनीक, रास्ते बनाने, प्रयोगशाला बनने का रास्ता खुलने की संभावना थी। यह भी कागजों तक ही सीमित रही।सेरेमिक हब बना पर सुविधाओं का अभावमिनरल उद्योग की प्रचुरता के चलते प्रदेश में सेरेमिक उद्योग लाने की कवायद शुरु हुई। इसके तहत बिजयनगर के पास सथाना में सेरेमिक हब के जमीन का आवंटन हुआ। यहां पर एक कम्पनी भी आई। गैस लाइन एवं पानी का अभाव होने से सेरेमिक कम्पनियों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। एेसे में योजना बनने के बावजूद फलीफूत नहीं हो सकी। प्रदेश के पाली, अजमेर एवं राजसमंद जिले में गैस सप्लाई के लिए दिल्ली की एक कम्पनी को टेंडर दिया गया है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह काम भी गति नहीं मिल सकी है। इसी प्रकार महालक्ष्मी मिल के नवीनीकरण पर मोहर लग चुकी है। राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में एक दशक से यह काम भी अटका पड़ा है।

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