फायदे के साथ बढ़ी मुसीबत
पहले जयपुर जिला में राजधानी के हिसाब से आने वाली बड़ी योजनाओं का फायदा मिल रहा था। लेकिन अब राजधानी के मुख्य जिले में से इन 18 तहसीलों को तोड़ कर जयपुर ग्रामीण नया जिला बनाने से लोगों को फायदा भी कम ही मिलेगा। अब तो यह भी संशय है कि बस्सी उपखण्ड इलाके का आधा हिस्सा जेडीए के अधीन आता है, यहां तक की बस्सी शहर भी। अब नया जिले बनने से कहीं यह अधिकार भी नहीं छिन जाए। जेडीए के अधीन आने वाले इलाकों में पंचायत समितियों से अधिक विकास होता है। पंचायतों एवं पीडब्ल्यूडी की सड़कों की बजाय जेडीए की सड़कों की क्वालिटी बेहतर होती है। जमीनों के भाव भी जेडीए स्कीमों में आने से अधिक बढ़ते हैं।
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ऐसे आती है बार-बार पता बदलने की समस्या
हर सरकार अपने कार्यकाल में कभी पंचायत समिति, कभी तहसील, कभी उपखण्ड तो कभी ग्राम पंचायतों का गठन करती है। इससे लोगों को बार-बार अपने नाम पतों में बदलाव करना पड़ता है। उदाहरणार्थ वर्ष 2018 में इसी सरकार ने बड़े पैमाने पर ग्राम पंचायतों का परिसीमन कर कई नई ग्राम पंचायतें बनाई थी। इसी दौरान बस्सी पंचायत समिति का परिसीमन तूंगा को नई पंचायत समिति बनाई थी। इससे पहले बस्सी पुलिस थाने का इलाका तोड़कर तूंगा नया थाना बनाया था। बस्सी तहसील से नई तहसील तूंगा बनाई थी। ऐसे में लोगों को बार-बार परिसीमन से आम लोगों को जहां सुविधाएं मिलती है उतनी दुविधा भी बन जाती है।