ब्रिटिश संरक्षण में धन जमा कराने का दिया आदेश
वर्ष 1857 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी के शोषण के विरुद्ध पूरे भारत में विद्रोह हुआ तो सेंधवा के वनवासियों ने भी इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। इनका नेतृत्व इस क्षेत्र में भीमा नायक और खाज्या नायक ने किया। स्थानीय नागरिक व व्यापारी इन्हें आर्थिक मदद पहुंचाकर अपना योगदान देते थे। जब ब्रिटिश व्यवस्था को इस बात की भनक लगी तो खानदेश के कलेक्टर ने ये आदेश जारी किया कि सेंधवा के व्यापारी अपना धन ब्रिटिश संरक्षण में जमा करवा दें। क्योंकि वह इस बात का प्रमाण पा चुका था कि व्यापारी इनकी मदद करते हैं।
वर्ष 1857 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी के शोषण के विरुद्ध पूरे भारत में विद्रोह हुआ तो सेंधवा के वनवासियों ने भी इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। इनका नेतृत्व इस क्षेत्र में भीमा नायक और खाज्या नायक ने किया। स्थानीय नागरिक व व्यापारी इन्हें आर्थिक मदद पहुंचाकर अपना योगदान देते थे। जब ब्रिटिश व्यवस्था को इस बात की भनक लगी तो खानदेश के कलेक्टर ने ये आदेश जारी किया कि सेंधवा के व्यापारी अपना धन ब्रिटिश संरक्षण में जमा करवा दें। क्योंकि वह इस बात का प्रमाण पा चुका था कि व्यापारी इनकी मदद करते हैं।
व्यापारियों ने किया ब्रिटिश हुकूमत का पूर्ण बहिष्कार कोष व खजाने के लूटे जाने के बाद निमाड़ के कार्यवाहक पोलिटिकल आरएच कीटिंग ने बंबई आगरा मार्ग के कार्यपालन यंत्री को लिखा कि, मैं दृढ़तापूर्वक अनुशंसा करूंगा कि आप महू से व्यापारियों को लेकर सेंधवा में बसाइए। सेंधवा के लोगों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। अंग्रेजों की इस नीति का परिणाम यह हुआ कि यहां के व्यापारियों ने ब्रिटिश हुकूमत का पूर्ण रूप से बहिष्कार कर दिया। और उन्हें किसी भी कीमत पर कोई भी वस्तु देने से साफ इंकार कर दिया। व्यापारियों के इस रुख ने अंग्रेजों के लिए भारी संकट उत्पन्न कर दिया। इस दौरान सेंधवा के दुर्ग में काफी अंग्रेजी सैनिक उपस्थित थे। इस तरह इस क्षेत्र के वनवासियों के विद्रोह से अंग्रेज बहुत चिंतित रहे।
सेंधवा में जनजागृति का आगाज
बीसवीं शताब्दी में जब देश ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कांग्रेस की अगुवाई में स्वयं को संगठित किया। तब देशी राज्यों में भी देशी राज्य परिषदों की स्थापना की गई। सेंधवा में भी 1938 में बैजनाथ महोदय और विश्वनाथ खोड़े की प्रेरणा से राज्य प्रजा मंडल का गठन किया गया। इसके प्रमुख कार्यकर्ता दशरथ सोनी, राम रतन शर्मा, प्रभू दयाल चौबे समेत नगर के सभी राष्ट्रीय विचारधारा रखने वाले व्यक्ति थे। इन लोगों ने जनता में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने का बीड़ा उठाया। और गांव-गांव जाकर लोगों से संपर्क किया। इन्होंने जनजागृति के साथ जनसेवा कार्य भी शुरू किया। भील, बारेलाओं के संपूर्ण विकास के लिए बैजनाथ महोदय की प्रेरणा से ग्राम सेवा कुटिर की स्थापना की गई। इसके माध्यम से शिक्षा, खादी उत्पादन, स्वदेशी प्रचार, स्वास्थ्य शिक्षा आदि कार्य संपन्न हुए। बारेला जाति के लिए दहेज कानून और कर्ज समझौता बोर्ड स्थापित करने में कुटिर ने अहम रोल अदा की। कुटिर के मुख्य संस्थापक दशरथ सोनी थे। इन्हीं के मार्ग निर्देशन में राम रतन शर्मा व प्रभूदयाल चौबे शिक्षकीय कार्य करते थे। साथ ही समय-समय पर विश्वनाथ खोड़े, रामेश्वर दयाल व काशी नाथ त्रिवेदी का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता था।
बीसवीं शताब्दी में जब देश ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कांग्रेस की अगुवाई में स्वयं को संगठित किया। तब देशी राज्यों में भी देशी राज्य परिषदों की स्थापना की गई। सेंधवा में भी 1938 में बैजनाथ महोदय और विश्वनाथ खोड़े की प्रेरणा से राज्य प्रजा मंडल का गठन किया गया। इसके प्रमुख कार्यकर्ता दशरथ सोनी, राम रतन शर्मा, प्रभू दयाल चौबे समेत नगर के सभी राष्ट्रीय विचारधारा रखने वाले व्यक्ति थे। इन लोगों ने जनता में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने का बीड़ा उठाया। और गांव-गांव जाकर लोगों से संपर्क किया। इन्होंने जनजागृति के साथ जनसेवा कार्य भी शुरू किया। भील, बारेलाओं के संपूर्ण विकास के लिए बैजनाथ महोदय की प्रेरणा से ग्राम सेवा कुटिर की स्थापना की गई। इसके माध्यम से शिक्षा, खादी उत्पादन, स्वदेशी प्रचार, स्वास्थ्य शिक्षा आदि कार्य संपन्न हुए। बारेला जाति के लिए दहेज कानून और कर्ज समझौता बोर्ड स्थापित करने में कुटिर ने अहम रोल अदा की। कुटिर के मुख्य संस्थापक दशरथ सोनी थे। इन्हीं के मार्ग निर्देशन में राम रतन शर्मा व प्रभूदयाल चौबे शिक्षकीय कार्य करते थे। साथ ही समय-समय पर विश्वनाथ खोड़े, रामेश्वर दयाल व काशी नाथ त्रिवेदी का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता था।
झंडा चौक पर हुई आम सभा 18 अगस्त को आंदोलन प्रारंभ किया गया। प्रभात फेरी निकाली गई। इसमें शहर के सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया। झंडा चौक में आम सभा आयोजित की गई। इसमें शर्मा, चौबे एवं विद्यार्थी जी ने प्रभावी भाषण दिया। मदिरा की दुकानों पर पिकेटिंग किया गया। शासकीय कार्यालयों पर धरना दिया गया। यहां तक की एक दिन कमलाबाई शर्मा एवं सुंदरबाई सोनी की नेतृत्व में महिलाओं ने जुलूस निकाला। हाथों में चूडिय़ां लेकर ब्रिटिश जज टीएन मुंशी के पास पहुंच गईं। उन्हें चूडिय़ां भेंट की और उनका हैट लेकर उसे किले के सामने जला दिया।
ग्रामों का योगदान भी था अहम
आंदोलन अपनी गति से चल ही रहा था कि 13 सिंतबर 1992 को शिवनाथ गुप्ता एवं बाबूलाल सोनी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। स्वतंत्रता के इस आंदोलन में सेंधवा क्षेत्र के अन्य ग्रामों ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। ओझर में नारायण सोनी, नांगलवाड़ी में महेंद्र सिंह ठाकुर, झोपाली में नारायण भावसार, निवाली में गणपत काले एवं दयाराम घोड़े, बलवाड़ी में राधा किशन, भेरूलाल पुरोहित, वरला में शिवानंद चौरसिया, खारिया में मिश्री लाल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
आंदोलन अपनी गति से चल ही रहा था कि 13 सिंतबर 1992 को शिवनाथ गुप्ता एवं बाबूलाल सोनी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। स्वतंत्रता के इस आंदोलन में सेंधवा क्षेत्र के अन्य ग्रामों ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। ओझर में नारायण सोनी, नांगलवाड़ी में महेंद्र सिंह ठाकुर, झोपाली में नारायण भावसार, निवाली में गणपत काले एवं दयाराम घोड़े, बलवाड़ी में राधा किशन, भेरूलाल पुरोहित, वरला में शिवानंद चौरसिया, खारिया में मिश्री लाल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
जब किले पर फहरा दिया तिंरगा कुछ नवयुवकों ने मध्यरात्रि में टेलीग्राम के तार काटकर संचार व्यवस्था को समाप्त करने का प्रयास किया। आंदोलन के दौरान एक दिन जमनालाल शाह ने अपने साथी किशन काले व नागेश गुप्ता के साथ मिलकर नगर के प्राचीन किले के शीर्ष पर राष्ट्रीय तिरंगा ध्वज फहराया। यह ध्वज लगभग एक घंटे तक किला प्राचीर पर फहराता हुआ नवयुवकों को देश प्रेम की वीर गाथा सुनाता रहा। यह घटना आज भी अविष्मरणीय है। जो हमारे मुल्क को आजादी दिलाने वालों के जज्बे को दर्शाती है।
स्वर्ण अक्षरों में लिखाई भूमिका आदिवासियों में भी मिट्ठू भाई एवं कालूभाई बारेला चाटली में, छतर सिंग पटेल झिरीजामली में, ग्राम सेवा कुटिर के छात्र शंकर, रामचंद्र, सायला, सुरभान, अभयसिंग, फुलसिंग, घना जी आदि ने सक्रिय रूप से आंदोलनों में हिस्सा लिया। इस तरह सेंधवा अंचल ने राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा में सम्मिलित होकर स्वतंत्रता के लिए अपनी भूमिका को स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया। निमाड़ के लोगों की ओर से स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए योगदान को पुस्तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में पश्चिम निमाड़ की भूमिका में विस्तार से वर्णन मिलता है।