एक दिन बार 12 सितबर को उसके मौत होने की सूचना परिजनों को मिली, लेकिन उसके शव को अंतिम संस्कार के लिए गांव लाना मुश्किल हो गया। कागजी कार्यवाही व अन्य दस्तावेजों की प्रक्रियाओं को संपन्न करवाना गरीब परिवार के लिए असंभव था। बेटे की मौत से गमजदा पिता राजू्राम व मां परमेश्वरी रात दिन बेटे के शव के इंतजार में आंसू बहाते हुए सुध बुध खो चुके थे। छोटे भाई हेमंत ने बताया कि उनको उम्मीद थी कि भाई विदेश में मजदूरी करके उसकी पढ़ाई के लिए बेहतर प्रबंधन करेगा। कमाई से घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होने को लेकर पूरे परिवार उससे उम्मीद लगाए बैठा था।
परिजनों को करनी पड़ी कड़ी मशक्कत
मृतक प्रकाशचंद्र के शव को अपने वतन लाने के लिए परिजनों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।
बाड़मेर के समाजसेवी हीराराम सारण ने
पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को घटना की जानकारी देते हुए शव को देश लाने गुहार लगाई। इस पर चौधरी ने भारत के विदेश मंत्री को इससे अवगत करवाया।
भारत के विदेश मंत्रालय के अफ्रीकी दूतावास में निरंतर संपर्क पर 22 सितबर को अफ्रीका से शव रवाना किया, जो इथोपिया होते हुए 24 सितबर की सुबह मुंबई एयरपोर्ट पर उतरा। वहां से विमान से इसे जोधपुर लाया गया। मंगलवार दोपहर जोधपुर एयरपोर्ट से सड़क मार्ग से शव को घर लाया गया। शाम को मृतक के पैतृक गांव हेमजी का तला में उसका दाह संस्कार किया गया।