– जिले को क्षमता के आधार पर आठ भागों में बांटा गया है। इसमें प्रथम भाग एेसा होता है, जिसकी उर्वरक क्षमत सबसे ज्यादा होती है, जिले में यह जमीन नहीं है। द्वितीय व तृतीय भाग, जो सिंचित योग्य है, वह कुल भू भाग का करीब 21 फीसदी ही है। सबसे ज्यादा 48 फीसदी से अधिक जमीन असिंचित है, जो बारिश पर निर्भर है। जिले में पथरीली, लवणीय व अकृषि योग्य जमीन भी करीब 32 फीसदी है।
– जिले की मिट्टी में पोषक तत्वों की स्थिति भी चिंताजनक है। प्रमुख तेरह पोषक तत्वों में से यहां की मृदा में नौ ही है। ये तत्व भी जितना होना चाहिए, उतनी मात्रा में नहीं हैं। जिसका असर फसल पर पड़ता है और प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है।
– विशेषज्ञों के अनुसार हमारी जमीन की उर्वरक क्षमता अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कम ही है। एेसे में अब किसान बिना वैज्ञानिक सलाह के यूरिया, डीएपी सहित कई रासायनिक खाद का उपयोग कर उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं। इसका सही मात्रा में उपयोग नहीं करने से जमीन बीमार हो रही है। उनके अनुसार जैविक खेती से फायदा मिल सकता है, वहीं कृषि उपयोग के दौरान जमीन को साल-दो साल में एक बार बिना बोये रखना पड़ता है, लेकिन जिले में एेसा नहीं हो रहा। एेसे में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम हो रहा है।
– रासायनिक खाद का अधिक उपयोग यहां की जमीन के उत्पादन को प्रभावित कर रहा है। बतौर उदाहरण जहां ज्यादा रासायनिक खाद का उपयोग हो रहा है, वहां जीरे का उत्पादन प्रति हेक्टेयर छह से घटकर चार क्ंिवटल तक आ गया है। यहीं स्थिति इसबगोल, तारामीरा, सरसों, मूंगफली सहित अन्य फसलों में भी देखने को मिल रही है। हालांकि स्थिति अभी तक चिंताजनक नहीं कह सकते, लेकिन सोचनीय स्थिति जरूर बन गई है।- डॉ.प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केन्द्र दांता