ऐसे में अशोक गोदारा ने बताया कि क्यों वह रविंद्र सिंह भाटी को छोड़कर केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी का चुनाव प्रचार कर रहे है। कैसे रविंद्र सिंह भाटी और अशोक गोदारा की दोस्ती में खटास पैदा हुई और आज दोनों अलग-अलग हैं।
अशोक गोदारा ने भाजपा में शामिल होने पर कहा कि वे भाजपा की विचारधारा से पहले ही प्रभावित थे। पहले इस परिवार से जुड़े नहीं थे, अब इस परिवार से जुड़ गए हैं। विचारधारा की लड़ाई है।
विचारधारा की बात है बस
रविंद्र सिंह भाटी से दूरी को लेकर गोदारा ने बताया कि जब पति-पत्नी की अलग पार्टी हो सकती है तो दोनों की क्यों नहीं, बस विचारधारा की बात है। मेरे एक भाई कांग्रेसी तो मैं खुद भाजपा से हूं और एक भाई (रविंद्र सिंह) निर्दलीय है। उन्होंने भाटी से भाजपा के मुकाबले को लेकर कहा कि मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं कि वे आगे बढ़े और चुनाव में विजयी हो। मैं बाड़मेर से चुनाव नहीं लड़ रहा हूं। बाड़मेर-जैसलमेर से राष्ट्रवाद चुनाव लड़ रहा है। कमल का फूल चुनाव नहीं लड़ रहा है।
पहले सोना था तो अब लोहा कैसे हो गया?
गोदारा ने कहा कि मेरा उनसे कोई मनमुटाव नहीं है। मैंने कौनसी उनसे विधायकी मांग ली। वो विधायक हैं और विधायक रहेंगे। हमारी को संपत्ति को लेकर लड़ाई नहीं है। बाकी छोटी-मोटी बातें होती रहती है। घर में बर्तन बजते रहते है। अशोक गोदारा जब तुम्हारे साथ को सोना था फिर आज कैसे लोहा हो गया? अशोक गोदारा ने बताया कि उनकी लास्ट बात भाजपा में ज्वॉइनिंग से पहले हुई थी। उसके बाद वे (रविंद्र सिंह) चुनाव में व्यस्त हैं तो मैंने बात करना मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने कहा कि वे एक बार बुलाए तो सही… गोदारा अंतिम समय तक खड़ा रहेगा।