बाड़मेर

मनरेगा ने बदली किस्मत, कोई खा रहा खुद्दारी की रोटी तो किसी ने मजदूरी कर बेटे को बनाया व्याख्याता

Human Angle Story : मां से बेटा पढ़ने की जिद्द करता लेकिन मां की जेब में टका नहीं था। वह स्कूल भेजे भी तो कैसे? यही मां इस साल किताबें खरीदकर लाई और बेटे को दी है, जा पढ़ आगे बढ़।

बाड़मेरJul 08, 2024 / 12:50 pm

Kirti Verma

रावता राम सारण
Human Angle Story : मां से बेटा पढ़ने की जिद्द करता लेकिन मां की जेब में टका नहीं था। वह स्कूल भेजे भी तो कैसे? यही मां इस साल किताबें खरीदकर लाई और बेटे को दी है, जा पढ़ आगे बढ़।
मां के पास यह हौंसला आया है उसकी खुद की मनरेगा की मजदूरी से। एक महिला और मिली…यह महिला घुमक्कड़ परिवार की है। घर-घर मांगकर रोटी खाना मजबूरी था, क्योंकि जातिगत भेदभाव की वजह से गांव में काम ही नहीं मिलता। मनरेगा में उसके घर के तीन सदस्य 125-125 के हिसाब से 375 रुपए कमाकर ले आते हैै। वह कहती है, खुद की कमाई गर्म-ताजा और खुद्दारी की रोटी खाती हूं। खूब खा ली ठण्डी..बासी..और खैरात की।
यह भी पढ़ें

Human Angle Story: मां की आंखों से कोई देखेगा खूबसूरत दुनिया

खैरात नहीं खुद्दारी की रोटी
एक समय ऐसा था जिस दौरान घुमक्कड़ परिवारों को रोजी रोटी के लिए खैरात मांगनी पड़ती थी। इन परिवारों की पीड़ा यह थी कि उनको मांगने पर भी मजदूरी पर रखने को लोग तैयार नहीं थे। परिवार की महिलाओं को तो गांव- कस्बे में ऐसा कोई काम ही नहीं मिलता जिसको करने के बदले में उनको रुपया मिले। लिहाजा ये परिवार खैरात मांगकर गुजारा करते थे, लेकिन जब से मनरेगा जॉब कार्ड बने है। इनको गारंटी से काम मिल रहा है। इन लोगों ने अब खैरात मांगना छोड़ दिया है और खुद्दारी की गर्मी रोटी खाने लगे है। ऐसे ही एक परिवार की समदादेवी ने बताया कि परिवार में 6 सदस्य हैं। 3 जॉब कार्ड बने हुए प्रतिदिन 125 रुपए एक को मिलता है। हम लोग अब किसी के दरवाजे पर खड़े होकर आवाज नहीं लगाते, अब मजदूरी करते है। खुद बाजार से सामान लाते है। खुद रोटी बनाकर खाते है। ऐसे लगता है कि हम खुद्दार हो गए है। कमाकर खाई रोटी से बहुत सकून मिल रहा है।
मां के पसीने की कमाई से बेटे की किताबे
केहराणी सारणों का तला निवासी धनी देवी पति पुरखाराम की मृत्यु के बाद बेटे की पढ़ाई करवा रही है। पति की मृत्यु 20 वर्ष पहले हुई थी बेटे की पढ़ाई जारी रखनी थी। मनरेगा में रोजगार मिला और उससे मिलने वाली राशि को बचाकर अब बेटे को पढ़ा रही है। घर खर्च भी चलता है। धनीदेवी कहती हैै कि वह इस बार मिली मजदूरी से बेटे की किताबें लाई हैै, वह उमीद करती है बेटा पढ़ेगा-लिखेगा तो जिंदगी सुधर जाएगी।
मैं महिला… यह मेरी मजदूरी.. मेरा गुल्लक
खिवालिया नाडा निवासी मीरा देवी पत्नी भैराराम बताती है कि पति अपनी मजदूरी करते हैं। मैं महानरेगा में कार्य करने के लिए जाते हैं जो मजदूरी हमारे घर के लिए काम आ जाती है। पहले महिलाओं के पास पैसे नहीं होते थे,अब मेरे पास रुपए आते है। जो हमारे निजी खर्च के लिए काम आ जाता है। इस पैसे से घर को सहारा मिल रहा है।
मां-बाप ने मजदूरी कर बेटे को व्याख्याता बनाया
राणेरी टाकुबेरी निवासी धनी देवी बताती है कि 65 वर्ष की उम्र हो गई है पति-पत्नी दोनों महानरेगा के तहत मजदूरी करके कच्ची झोंपड़ियों में रहकर बेटे को पढ़ाया। लगातार महानरेगा में मजदूरी की। आज मेरा बेटा सवाईराम इसी वर्ष व्याख्याता बना है। मेहनत करनी पड़ी। घर के काम के साथ-साथ पति-पत्नी दोनों महानरेगा पर गए। अब मैं घर का काम भी करती हूं और मनरेगा कार्य होने पर वहां भी जाती हूं।
महानरेगा में पुरुषों से महिलाएं आगे
बाड़मेर बालोतरा जिले में महानरेगा में वर्ष 2023- 24 में 5,20,553 महिलाएं नरेगा में कार्य कर रही है। पुरुष 4,66,160 लोग महानरेगा में मजदूरी के लिए जाते हैं।

यह भी पढ़ें : एक ऐसा कैशियर, जो मन से भी धनवान, दिव्यांगों का संवार रहा जीवन

Hindi News / Barmer / मनरेगा ने बदली किस्मत, कोई खा रहा खुद्दारी की रोटी तो किसी ने मजदूरी कर बेटे को बनाया व्याख्याता

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.