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2003 में जिले में मंगला तेल खोज हुई। 2009 में बाड़मेर से तेल का उत्पादन शुरू हो गया और इसके बाद से लगातार अब तक बाड़मेर अरबों रुपए की रॉयल्टी दे चुका हैै। राज्य को करीब 4000 करोड़ रुपए की रॉयल्टी सालाना मिल रही है।
रिफाइनरी बन रही, विकास व्यवस्थित नहीं: तेल निकलने के बाद में पचपदरा में एक लाख करेाड़ की रिफाइनरी बुलंद हो रही है। 75 फीसदी से अधिक काम हो चुका है लेकिन अभी तक रिफाइनरी के निकटवर्ती इलाकेे मेे व्यवस्थित विकास कहीं नजर नहीं आ रहा है। पचपदरा कस्बा भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा है।
कोयला मिला पर भादरेस में विकास मद्धम: कोयला मिलने के बाद में भादरेस गांव से प्रतिदिन माह दस हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन हो रहा है लेकिन यहां पर भी विकास की तस्वीर मद्धम है। विकास को लेकर जो सपने दिखाए गए थे उन पर खरे नहीं उतरे है।
रोडमैप ही नहीं बना: बाड़मेर को दुबई बनाने के लिए रोडमैप ही नहीं बनाया गया है। 2003 से 2023 के सफर में बीस वर्ष बीत गए हैै। बीस वर्ष में बाड़मेर जिले में जहां तेल, कोयला, गैस और अन्य उत्पादन हो रहे है वहां गांवों की तस्वीरों में फर्क उतना ही नजर आता है जितना अन्य गांवों में। उदाहरणार्थ सेड़वा,धनाऊ जो चौहटन के गांव है जहां तेल-गैस-कोयला नहीं है वहां की रंगत इतनी बदली है कि देखने वाला दंग रह जाए। लेकिन ऐसी रंगत भादरेस, लीलाळा, सांभरा में नजर नहीं आ रही है।
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घोषणा पत्र में उल्लेख करें: जिलेभर के प्रत्याशी इसका उल्लेख अभी तक अपने घोषणा पत्र में नहीं कर रहे हैै। इनके लिए जरूरी है कि वे इसका उल्लेख करने के साथ लोगों के सामने वोट लेने जाए तो कहे कि हम बाड़मेर को दुबई बनाएंगे।