ध्वनि प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। अब तो सरकारी अस्पताल के साइलेंस जोन भी ध्वनि प्रदूषण की चपेट में आ चुके हैं। अस्पताल की 100 मीटर की परिधि में साइलेंस जोन होता है, लेकिन यहां भी कानफोड़ू शोरगुल है, जो दिन के साथ रात में भी मरीजों को चैन नहीं लेने देता है।
राजस्थान के प्रमुख शहरों में राजकीय अस्पताल क्षेत्रों में लगातार 24 घंटे ध्वनि प्रदूषण की मॉनिटरिंग की जा रही है। राजस्थान पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से यहां पर निगरानी के लिए सिस्टम लगाया गया है, जो डेटा संग्रहण करता है, जिससे अस्पताल के आस-पास रात और दिन में शोर के स्तर का पता चलता है।
अक्टूबर की रिपोर्ट में बाड़मेर के साइलेंस जोन राजकीय जिला अस्पताल के पास ध्वनि प्रदूषण का स्तर दिन में 64.8 व रात में 59 डेसिबल रेकॉर्ड हुआ है। अस्पताल के मरीजों को रात में भी राहत नहीं मिल रही है। वाहनों की आवाजाही और प्रेशर हॉर्न के उपयोग से साइलेंस जोन में शोरगुल बढ़ता जा रहा है। तेज आवाज तनाव और चिंता के स्तर को बढ़ाता है। अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बनता है। वहीं तेज आवाज के कारण हम दूसरों की बात स्पष्ट रूप से नहीं सुन पाते हैं। कुछ स्टडी से यह भी सामने आया है कि लंबे समय तक तेज शोर के संपर्क में रहने से उच्च रक्तचाप, दिल की धडक़न बढऩा और हृदय रोग के खतरे की आशंका भी बढ़ सकती है।
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इसलिए जरूरी है साइलेंस जोन
अस्पतालों के साइलेंस जोन में दिन में 50 और रात में 40 डेसिबल ध्वनि स्टैंडर्ड मानक है। इससे ज्यादा होने पर प्रदूषण की रेंज में आता है। अस्पताल का क्षेत्र मरीजों के स्वास्थ्य के चलते साइलेंस जोन होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि शांत वातावरण में मरीज शीघ्र स्वस्थ होते हैं। शांत क्षेत्र में ही व्यक्ति को आराम मिलता है और तनाव मुक्त रहता है। यह भी पढ़ें