अफसोस है कि 37 दिनों के इस बहाव में लाखों-करोड़ों लीटर बेहिसाब जलराशि बहते-बहते गांधव के बाद सहस्त्र धाराओं में बंटकर फालूत हो रही है। इस पानी को रोकने, काम में लेने और उपयोगी बनाने की कोई योजना नजर नहीं आती। जमीन के भीतर उतरे इस पानी से आस-पास भूमि रिचार्ज जरूर हुई है।
सरकार ध्यान दें, फिजूल बह रही अनमोल जलराशि
- वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से कस्बों में लूनी नदी के किनारे पर ऐसे तालाब बनाए जाए जो नदी के पानी से भरे और सालभर तक पानी नसीब हों
- बालोतरा शहर, धार्मिक स्थल जसोल, तिलवाड़ा, बड़े कस्बे समदड़ी, सिणधरी में नदी किनारे घाट बनाकर यहां पर्यटन विकसित किया जा सकता ह। लूणी के बहाव क्षेत्र के किनारे-किनारे वनस्पति लगाने की योजना दो दशक पहले बनी थी जो फलीभूत नहीं हुई
- नदियों को नदियों से जोड़ने की योजना पर भी विचार किया जाए
कहीं संकरी, कहीं चौड़ी
जोधपुर के धुंधाड़ा में नदी के लिए पूरा लंबा क्षेत्र है। बालोतरा के भलरों का बाड़ा व भानावास के पास नदी संकड़ी है। समदड़ी कस्बे के लूनी नदी की पूरी रपट पर पानी का बहाव है। आगे बालोतरा तक पूरी चौड़ाई मिलने से नदी का बहाव अभी बालोतरा में रपट के नीचे चल रहा है। तिलवाड़ा तक यही स्थिति है। तिलवाड़ा से आगे सिणधरी तक नदी फिर संकरी हो जाती है।
सिणधरी में फिर चौड़ाई मिल रही है। सिणधरी के आगे के गांवों में कहीं संकरी और कहीं चौड़ी है। फिर, गांधव के बाद धाराओं में विभिक्त हो जाती है। लूनी का मार्ग के गांव बाड़मेर में रामपुरा, महेशनगर, देवलियारी, पातों का बाड़ा, कीटनोद, भिंडाकुआं, बामसीन, अजीत, चारणों का बाड़ा, भलरों का बाड़ा, भानावास, राणीदेशीपुरा, समदड़ी, सिलौर, जेठंतरी, पारलू, कनाना, सराणा, बिठूजा, बालोतरा, जसोल, मण्डपुरा, तिलवाड़ा, गोलसोढा, मेकरना, सिणधरी, दग्वा, प्याल कलान, मोतीसरा, कादानाडी, सड़ा, भटाला, लोलावा, खुुडाला, जालीखेड़ा, धांधलावास, गांधव कला, गादेवी, बांता, सिंधासवा चौहान, रतनपुरा, देदावास।
सावधान: सेल्फी से जरूरी है
गांधव में लूनी नदी में डूबने से दो सगे भाइयों की मौत और इससे पहले की घटनाओं ने अब लोगों को सावधानी बरतने की चेतावनी दी है। आजकल नदी के भीतर जाकर सेल्फी ग्रुपी लेने की हौड़ ज्यादा है। नदी के किनारे, डूब, रेत के बहाव और पानी का धार का ज्ञान न होने पर भी अनजान, लापरवाही और दुस्साहस में पानी में उतरना गलत है। सेल्फी से ज्यादा जिंदगी है,इसको समझते हुुए नदी के बहाव से दूर रहने की जरूरत है।
पुलिस भी करवाए लगातार मुनादी
नदी का बहाव लगातार हैै और लोग लापरवाह हो जाते है। ऐसे में पुलिस के लिए भी जरूरी है कि यहां पर लगातार मुनादी शहर और कस्बों में करवाई जाए ताकि लोग पानी से दूर रहे और उनमें एक जागरूकता भी रहे। उम्मीदें: इन पर हो काम
- लूणी नदी के इस इलाके में जब पहले लगातार बहाव व खेतों में पानी भर जाता था तो यहां लोग सदिज़्यों में रायड़ा, गेहूं, मूळी, धनिया, चने की खेती करते थे। खेतों में खरीफ के बाद होने वाली इस फसल की अलग से आमदनी भी होती थी, लेकिन बाद में लूणी में नदी में पानी बंद हो गया। रासायनिक पानी आने से भी खेती खराब हुई। अब 37 दिन तो चली हैै लेकिन पानी खेतों से बाहर तक नहीं आया है। आगे फिर बरसात हो और खेतों में पानी का भराव हो जाए तो रायड़ा होने की गुंजाइश है।
- लूनी विकास योजना बनेलूनी नदी के विकास को लेकर योजना बनाने की दरकार है। इसके लिए दो दशक पहले एक प्रोजेक्ट बनाकर भेजा गया था। इसमें नदियों को नदियों से जोड़ने में लूनी को शामिल करने की सिफारिश पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंतसिंह जसोल ने की थी, लेकिन बाद में इस प्रोजेक्ट को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया।
- पर्यटन केन्द्र बनाने की दरकारबालोतरा शहर में लूनी कॉरिडोर बनाया जा सकता है। यहां पर लूनी नदी शहर को बीचोबीच है। अहमदाबाद के साबरमती की तर्ज पर ही यहां पर लूनी कॉरीडोर बनाकर जसोल तक इसका विकास हों तो बालोतरा के ओद्यौगिक इलाके, रिफाइनरी, आसोतरा-नाकोड़ा-जसोल- खेड़ आने वाले धामिज़्क पर्यटकों को भी यहां पर्यटन को एक बड़ा स्थल मिल सकता है। साथ ही बालोतरा शहर के लिए बड़ी सौगात हो सकती है।