बाड़मेर। १२वीं सदी के किराडू के भग्नावेश मंदिर। मंदिरों ने सदियों से रेगिस्तान की रेतीली आंधियों को सहा है। ५० डिग्री तक के तापमान को झेला है। अकाल की पीड़ा में इन पत्थरों का रंग पेड़ों की तरह सूखा हुआ है। तीन साल की लगातार अच्छी बारिश के बाद यहां चहुंओर हरियाली छाई है और इसके झरोखे से झांकते इतिहास को कैमरे में कैद किया पत्रिका फोटो जर्नलिस्ट ओम माली ने।
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अभावों में जी रहे थार में १९६५ और १९७१ के भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ के साक्षी रहे है। २००१ में आया भूकंप भी इनको अडिग नहीं कर सका। ९०० साल का इतिहास समेटे मंदिरों में पत्थर पर एेसी बारीक कलाकारी है जैसी सागवान एवं रोहिड़े की मुलायम लकड़ी पर ही संभव है, पत्थर पर इस नक्काशी को कुरेदने वाले कलाकारों की यह कला विस्मित करती है। मरूस्थल में अभाव और दुर्भिक्ष के सांझी रहे मंदिर अब यहां बदले पर्यावरण को देख रहे हंै।
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१२वीं सदी के किराडू के भग्नावेश मंदिर। मंदिरों ने सदियों से रेगिस्तान की रेतीली आंधियों को सहा है।
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१२वीं सदी के किराडू के भग्नावेश मंदिर। मंदिरों ने सदियों से रेगिस्तान की रेतीली आंधियों को सहा है।
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१२वीं सदी के किराडू के भग्नावेश मंदिर। मंदिरों ने सदियों से रेगिस्तान की रेतीली आंधियों को सहा है।
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१२वीं सदी के किराडू के भग्नावेश मंदिर। मंदिरों ने सदियों से रेगिस्तान की रेतीली आंधियों को सहा है।
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१२वीं सदी के किराडू के भग्नावेश मंदिर। मंदिरों ने सदियों से रेगिस्तान की रेतीली आंधियों को सहा है।
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१२वीं सदी के किराडू के भग्नावेश मंदिर। मंदिरों ने सदियों से रेगिस्तान की रेतीली आंधियों को सहा है।