ऐसे में अब कई परिवारों की रसोई फिर से लकड़ी के चूल्हे पर बनने लगी है। रसोई का धुआं फिर से पूरे घर में भरने लगा है। पत्रिका टीम ने शहर के नेहरू नगर में पुल के बसी बस्ती में उज्जवला योजना की हकीकत जानी तो यहां पर कई परिवार ऐसे सामने आए, जो सिलेंडर नहीं भरवा पा रहे है। परिवारों का कहना है कि दाम इतने अधिक बढ़ गए हैं कि इससे कम में लकड़ी और उपलों से काम चल जाता है। एक साथ सिलेंडर के इतने पैसे देना उनके बूते के बाहर है।
घर के कौने में रख दिया सिलेंडर
सिलेंडर महंगा होने के कारण लम्बे समय से खाली पड़ा है। जिसे अब घर के एक कौने में रख दिया है। वहीं खाना अब लोहे के चूल्हे पर लकड़ी जलाकर बनाया जा रहा है। सुबह-शाम यही क्रम चलता है। पूरे दिन में चूल्हा दो बार जलाते है, जब खाना बनाना होता है।
कोरोना की परिवारों की दोहरी मार
महंगाई के कारण दो वक्त की रोटी जुटाने में मुश्किलों को झेल रहे परिवारों के लिए कोरोना महामारी ने और परेशानियां खड़ी कर दी। काम-धंधा छूट गया और कइयों को जहां काम करते थे, वहां से निकल दिया गया। अब घर में बैठे लोग कई महीनों से बेरोजगारी की स्थिति में आ गए हैं। लोग बताते हैं कि कोरोना ने सब कुछ छीन लिया। परिवार को पालना मुश्किल हो गया। ऐसे में गैस सिलेंडर कहां से भरवाएं।
बस्ती में कई परिवारों का खाना चूल्हे पर पक रहा
पड़ताल में सामने आया कि यहां पर उज्जवला योजना के परिवारों के अलावा भी कई परिवार ऐसे हैं, जो सिलेंडर महंगा होने के कारण नहीं भरवा पा रहे हैं। ये परिवार भी अब चूल्हे पर लकड़ी और उपलों पर ही दोनों वक्त का खाना पकाते हैं। इनके यहां सिलेंडर भरवाए हुए लम्बा समय हो चुका है।