scriptबॉर्डर पर नहीं चल रहा गांधी का चरखा, करघा भी नहीं आ रहा काम | Gandhi's spinning wheel is not running on the border, loom is also not | Patrika News
बाड़मेर

बॉर्डर पर नहीं चल रहा गांधी का चरखा, करघा भी नहीं आ रहा काम

– बॉर्डर पर नहीं चल रहा गांधी का चरखा, करघा भी नहीं आ रहा काम
– गांधी जयंती विशेष – बाड़मेर, जैसमलेर और बीकानेर में संचालित हो रहे थे खादी केन्द्र
-पहले थे बारह, अब बचा एक वहां भी नाममात्र का काम

बाड़मेरOct 05, 2020 / 08:55 pm

Dilip dave

बॉर्डर पर नहीं चल रहा गांधी का चरखा, करघा भी नहीं आ रहा काम

बॉर्डर पर नहीं चल रहा गांधी का चरखा, करघा भी नहीं आ रहा काम

बाड़मेर. बॉर्डर के तीन जिलों बाड़मेर, जैसलमेर और बीकानेर में खादी का चरखा अब मौन है। कभी सात हजार घरों में रोजगार दे रही खादी की उपेक्षा ने अब मात्र पचास घरों तक ही काम का समेट लिया है। उसमें से भी मात्र हजार-पन्द्रह सौ रुपए महीने का काम मिलने पर चरखे व करघे बंद हो चुके हैं। एेसे में न तो कतवारिने ऊन कात रही है और ना ही बुनकर पट्टू , बरडी या शॉल बना रहे हैं।
लॉकडाउन के दौरान तो नाममात्र का काम ही मिला। महात्मागांधी की प्रिय खादी कभी बॉर्डर के जिले बाड़मेर, जैसलमेर और बीकानेर में रोजगार का जरिया था। यहां की महिलाएं ऊन कात कर रोजगार प्राप्त करती थी तो बुनकर करघा चला ऊनी वस्त्र बनाते थे। कई दशकों तक खादी ने बॉर्डर के गांवों में लोगों को घर बैठे रोजगार दिया, लेकिन इसके बाद उपेक्षा का शिकार हो गई।
रफ्ता-रफ्ता लोगों का रोजगार छूट गया। यहां थे केन्द्र जिन पर तले ताले- बीकानेर जिले में बज्जू, जैसलमेर में बैकुंडग्राम, म्याजलार व नाचना तथा बाड़मेर में शास्त्रीग्राम, बंधड़ा, हरसाणी, गूंगा, गडरारोड, बालेवा, विशाला व बावड़ी में खादी केन्द्र थे। इनमें से वर्तमान में मात्र बैकुंडग्राम ही एेसा केन्द्र है जो वर्तमान में संचालित हो रहा है। हालांकि याहां पर भी चतुर्थश्रेणी के भरोसे काम चल रहा है। साढ़े सात हजार की जगह मात्र पचास को ही रोजगार- सालों पहले तीनों जिलों में करीब सात हजार कतवारिनें इन केन्द्रों पर रजिस्ट्रर्ड थी, जिनको ऊन की कताई का काम मिलता था। हर माहा घर बैठे रोजगार मिलने पर जरूरतमंद परिवार कताई पर ही निर्भर थे। वहीं पांच सौ बुनकर शॉल, पट्टू, बरड़ी आदि बना कर रोजगार प्राप्त कर रहे थे।
वर्तमान में चालीस-पचास कतवारिनें व बुनकर ही रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। लॉकडाउन में रोजगार का तरसे- लॉकडाउन के दौरान खादी का काम एक तरह से पूरी तरह से बंद हो गया। इस पर आठ माह से न के बराबर काम मिल रहा है। क्योंकि न तो कतवारिनों तक कच्चा माल पहुंच रहा है और ना ही बुनकर को कोई कार्य के लिए आदेश। एेसे में पचास कतवारिनों व बुनकर में से अधिकांश ठाले ही बैठे हैं।
काम की जरूरत- सरकार खादी को बढ़ावा दे रही है, लेकिन अभी भी बॉर्डर पर कार्य अपेक्षानुरूप शुरू नहीं हुआ है। सरकार ठोस कार्ययोजना बना कर सभी बंद केन्द्रों को पुन: शुरू कर हजारों घरों में रोजगार दे सकती है। घरों में कताई व बुनाई का कार्य शुरू हुआ तो नई पीढ़ी भी रुचि लेगी।- पब्बाराम, बुनकर सभी केन्द्र पुन: शुरू किए जाए- खादी की मांग कुछ समय से बढ़ रही है। सरकार सभी केन्द्रों को पुन: संचालित कर बॉर्डर के गांवों में रोजगार दे सकती है। इसको लेकर जनप्रतिनिधियों के साथ खादी कमीशन से जुड़े अधिकारी भी ध्यान दे तभी यह संभव होगा।- समुन्द्रसिंह फोगेरा, जिला संयोजक स्वदेशी जागरण मंच बाड़मेर

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