साढ़े तीन बीघा में विरेन्द्रधाम
वन एवं पर्यारवरण मंत्री हेमाराम चौधरी के इकलौते पुत्र प्रोफेसर विरेन्द्र चौधरी की 21 मार्च 2015 को मृत्यु हो गई। पुत्र के जाने के ठीक सात माह बाद उन्होंने शहर के बीचो बीच स्थित अपनी बेशकीमती साढ़े तीन बीघा जमीन पुत्र की स्मृति में समर्पित कर दी। वर्तमान में इस जमीन का बाजार मूल्य तीस करोड़ रुपए से अधिक है। वर्ष 2016 में जमीन में कुछ पुराने कमरे बने हुए थे, जिसे जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा के लिए खोल दिया गया, जिसमें करीब 70 विद्यार्थी पढऩे लगे। अब इस जमीन पर विरेन्द्रधाम नाम से छात्रावास बन गया है।
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बहन ने ली जिम्मेदारी
वर्ष 2020 में हेमाराम चौधरी को कोरोना हो गया। पुत्रवधू सरोज, पुत्री सुनिता चौधरी व परिवार के अन्य सदस्य उनके पास थे। सुनिता बताती है कि उस समय पापा ने कहा कि विरेन्द्र की याद में बच्चों के लिए हॉस्टल बनाना है। पापा जमीन पहले ही दे चुके थे, लेकिन हॉस्टल नहीं बना था, इस पर मैंने तय किया कि भैया की याद में मैं पूर्ण सुविधायुक्त हॉस्टल बनवाऊंगी। अब हॉस्टल बनकर तैयार हो गया है तो ऐसे लगता है कि भैया हम सबके बीच में ही है।
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आधुनिक होटल जैसा हॉस्टल
पांच मंजिला विरेन्द्रधाम में कुल 86 कमरे हैं। हर कमरे में अटैच लेटबाथ है। बाथरूम में गिजर भी है। कमरों में पलंग, गद्दे, टेबल कुर्सी, कम्प्युटर टेबल वायरिंग इत्यादि सभी आधुनिक सुविधाएं है। छात्रावास की हर मंजिल पर बड़े-बड़े सेमिनार हॉल व पुस्तकालय है। आधुनिक किचन है, जिसमें रोटियां बनाने के लिए मशीन, हॉटल्स की तर्ज पर हॉट बुफे व खाना खाने के लिए टेबल कुर्सी की व्यवस्था है। छात्रावास में सभी जाति वर्ग के जरूरतमंद व प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को वरीयता के आधार पर प्रवेश दिया जाएगा।