छोटे कस्बे से किया दक्षिण कोरिया तक का सफर
पेंपो प्रजापत के पिता सब्जी विक्रेता हैं। पेंपो ने बताया कि उसने आठवीं तक की पढ़ाई गांव के ही विद्यालय से की। बारहवीं उतीर्ण करने के बाद पेंपो का झारखण्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला हुआ, लेकिन यहां तीसरी भाषा के रूप में दक्षिणी कोरिया (कुरियन) भी लेनी थी। हिंदी माध्यम से पढ़ी और घर पर मारवाड़ी बोली बोलने वाली पेंपो के लिए यह एक चुनौती थी, लेकिन उन्होंने इसे सहजता से स्वीकार कर लिया। पहले ही साल में उसने भाषा सीख ली और अपनी स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। कोरियन के साथ स्नातक पूर्ण करने के बाद पेंपो को आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय जाना था, लेकिन वह बताती हैं कि पिता पर आर्थिक बोझ कम करने और उनकी मदद के लिए उन्होंने नौकरी करने और अपनी पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया। इस दौरान उन्होंने चेन्नई की एक कंपनी में कोरियाई भाषा की नौकरी की। इस तरह उनकी रुचि बढ़ती गई। फिर ठान लिया कि अब तो कोरिया जाउंगी।
फिर क्या, विभिन्न माध्यमों से स्कॉलरशिप के लिए प्रयास किए। दो बार इसके लिए परीक्षा दी और वह अब सफल हो गई। कोरिया की ईवाह वूमेन युनिवर्सिटी में चयन हुआ। यहां पढ़ाई पूरी करने के बाद पेंपो बतौर इंटरनेशनल भाषा ट्रांसलेटर कार्यरत हैं। इस तरह, छोटे से कस्बे से निकलकर पेंपो प्रजापत में दक्षिण कोरिया तक का सफर किया। वह कहती है कि आगे उसको और अच्छे विकल्प मिले, तो वह उन पर भी काम करेगी।