खास बात यह है कि प्रवेशोत्सव अभियान हो या फिर घर-घर सर्वे ये भी बड़ी कक्षाओं में छात्राओं की तादाद बढ़ाने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। सरकारी विद्यालयों में पिछले चार शिक्षा सत्र में बालिकाओं की तादाद बालकों से करीब ढाई-तीन लाख कम है जिसमें उच्च कक्षाओं में अंतर अधिक है। उच्च प्राथमिक तक अंतर कम, फिर हो रहा ज्यादा- शिक्षा सत्र २०१८-१९ से २०२०-२१ तक के आंकड़े बताते हैं कि पहली से आठवीं कक्षा तक बालक-बालिकाओं के नामांकन में अंतर काफी कम है। पहली-दूसरी में तो लगभग बराबर की स्थिति है जबकि तीसरी से पांचवीं तक थोड़ा अंतर है। छठीं से आठवीं में प्रति कक्षा दो हजार से ज्यादा नामांकन का फासला नहीं है। इसके बाद बेटे-बेटियों के नामांकन में अंतर शुरू होता है। आठ कक्षाओं में जहां दस-बारह हजार से ज्यादा नामांकन कम नहीं है, वहां नवीं से बारहवीं में यह अंतर मात्र चार कक्षाओं में बारह से पन्द्रह हजार के बीच का आ रहा है।
बालक पढ़ाई पर ध्यान, बालिकाएं घर का काम- आठवीं कक्षा के बाद बालक और बालिकाओं की शिक्षा को लेकर बड़ा अंतर नजर आता है। आठवीं के बाद बालक जहां आगे की पढ़ाई के लिए बस्ते संभालते हैं तो बालिकाएं पढ़ाई छोड़ घर का चूल्हा-चौका संभालती है।
एेसे में जिले में बालिका शिक्षा का अनुपात कम होने लगता है। इस शिक्षा सत्र में ही यही स्थिति– वर्तमान शिक्षा सत्र २०२१-२२ में प्रवेशोत्सव का दौर खत्म हो चुका है। हालांकि पहली से आठवीं तक की कक्षाओं का नामांकन वर्षपर्यन्त चलता है लेकिन अब तक की स्थिति के अनुसार ५ लाख ७१ हजार का नामांकन हो चुका है। इसमें बालिकाओं की तादाद २ लाख ९९ हजार है जबकि बालिकाओं का नामांकन २ लाख ७२ हजार अनुमानित है।
विशेप प्रयास किया जाएगा- बालिकाओं का नामांकन बालकों की तादाद में कम है। आठवीं के बाद अनुपात बढ़ रहा है जो कि चिंता की बात है। हम प्रवेशोत्सव के साथ अभिभावकों से समझाइश करते हैं कि वे बालिकाओं को भी स्कू ल भेजें। स्वयंपाठी के रूप में भी बालिकाएं पढ़ती है। हमारा विशेष प्रयास रहेगा कि बालिकाओं का नामांकन बढ़े।- नरसिंगप्रसाद जांगिड़, सहायक निदेशक, जिला शिक्षा अधिकारी प्राथमिक मुख्यालय बाड़मेर