प्रमोद के पिता का कहना है कि उनकी छोटी बेटी प्रमोद बचपन से ही मेधावी और मेहनती है। इसलिए पिता होने के नाते मैंने हर संभव प्रयास किया कि मेरे बच्चे सक्षम बनें। प्रमोद को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था, जिसके बाद उसे बेहतर पढ़ाई के लिए बाड़मेर भेजा। पिता ने बताया कि बेटे और बेटियों में फर्क नहीं किया और एक जैसे मौके देने के हरसंभव प्रयास किए। हालांकि प्रमोद के अलावा मेरी अन्य बेटियों को पढ़ाई ज्यादा नहीं भाया, लेकिन छोटी बहन की सफलता के बाद सभी गौरवान्वित हैं।
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एनसीसी जॉइन करने के बाद हुआ वर्दी से प्यार
प्रमोद भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर के छोटे से गांव दुधू की है। वह 7 बहनों में सबसे छोटी है। प्रमोद बताती है कि उसकी शुरुआत की पढ़ाई उसके गांव में हुई फिर 12वीं धोरीमन्ना कस्बे से की और इसके बाद उसको उसके पिता ने पढ़ने के लिए बाड़मेर भेज दिया, जहां एनसीसी को जॉइन करने के बाद उसको वर्दी से प्यार हो गया। हालांकि इस दौरान 5 बार असफल हुई, लेकिन मेहनत व लगन में कमी नहीं आने दी। प्रमोद बताती है कि लोगों के तानों की वजह से ही उन्हें सफलता हाथ लगी है। वह कहती है कि आसपास के लोग घरवालों को खूब ताने देते थे ऐसे में घर जाना भी अच्छा नहीं लगता था। लेकिन अब सफलता के बाद सभी खुश हैं।