इस दौरान उन्होंने कहा कि जिले में पशुओं की संख्या पूरे राजस्थान के जिलो से अधिक है, गोबर भी उसी अनुरूप अधिक होता है, लेकिन किसानों के सही तरीके से प्रयोग नहीं करने से इसमें उपस्थित पौषक तत्व समाप्त हो जाते हैं।
किसान सदियों से चली आ रही परम्परा अनुसार गोबर उनके बाड़े से सीधे ही खेत में डाल देते हैं जो कि किसी काम का नहीं रहता है। किसान जब पशुओं के बाड़े से गोबर उठता है तब वो सीधे खेत में ना डाल कर एक गड्डा बना कर उसमे डाले और 6 माह बाद इसे खेत में डाले तो फायदा होता है। उन्होंने कहा कि अब जमाना बदल चुका है इसलिए जलवायु के अनुसार किसान भी खेती के तरीकों को बदलना होगा, जिससे किसान अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सके।
केन्द्र के पशुपालन विशेषज्ञ बीएल डांगी ने बताया कि गरल ग्राम पंचायत में निकरा परियोजना का संचालन पिछले पांच वर्षों से हो रहा है जिसमें किसानों को प्रशिक्षण के दौरान और प्रदर्शन लगा कर बताया जा रहा है कि गोबर का प्रयोग सही कैसे किया जाए। किसानों को वर्मी कम्पोस्ट बनाकर बताया गया।