शादी के बाद दोनों के सामने खेलों में स्वर्णिम भविष्य बनाने का अवसर था, मगर परिवार की बागडोर संभालने के लिए किसी एक को पीछे हटना जरूरी हो गया था। तब मंजू ने खुद की बजाय देवेन्द्र को आगे बढ़ाने का फैसला किया।
यह भी पढें: गोल्ड मेडलिस्ट देवेन्द्र कभी नंगे पैरों से खेतों में लकड़ी के भाले बनाकर करते थे तैयारी देवेन्द्र ने बताया कि पास के गांव चीमनपुरा निवासी मंजू से वर्ष 2007 में शादी हुई। तब वे मलसीसर स्थित हैलिना कौशिक महाविद्यालय में फाइनल की स्टूडेंट व कबड्डी खिलाड़ी थीं।
गेम छोडऩा चाहा तो बढ़ाया हौसला
मंजू ने न केवल परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाई बल्कि देवेन्द्र का हौसला बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वर्ष 2013 में देवेन्द्र के कंधों व घुटनों में दर्द हो गया। वे खेल छोडऩा चाहते थे, मगर मंजू ने उन्हें 2016 के पैरा ओलम्पिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक लाने का सपना याद दिलाया और गेम छोडऩे की बजाय दर्द हो जितने समय कम खेलने के लिए प्रेरित किया, मगर उन्हें गेम नहीं छोडऩे दिया। इनके दो साल का बेटा काव्यान भी है।
15 मिनट सिर्फ खेल की बातें
ओलम्पिक से भारत के लिए स्वर्ण पदक लाना कभी मेरा भी ख्वाब था, जो पति के जरिए अब पूरा हो गया। उन्हें आगे बढ़ाना था और परिवार की जिम्मेदारी भी संभालनी थी तो मैंने कबड्डी छोड़ दी। किसी प्रतियोगिता या प्रशिक्षण के लिए देवेन्द्र घर से बाहर होते हैं तो शुरुआत की 15 मिनट तक हम सिर्फ खेल की ही चर्चा करते हैं।