स्टाफ की कमी की वजह से रखे गये कंप्यूटर आपरेटर, बन गये सिरदर्द
नगर निगम में स्टाफ की कमी की वजह से टैक्स विभाग से लेकर निर्माण, लेखा, जलकल, स्वास्थ्य और नगर निगम के अन्य कार्यालयों पर कंप्यूटर ऑपरेटर्स की जरूरत हुई। इसके लिए प्राइवेट कंपनी से कंप्यूटर ऑपरेटर्स मांगने की कार्ययोजना बनी। सांठगांठ का खेल शुरू हुआ और 51 कंप्यूटर ऑपरेटर्स नगर निगम में तैनात कर दिए गए। एक कंप्यूटर ऑपरेटर्स का मानदेय 20 से 25 हजार रखा गया। नगर निगम जानकारों ने बताया कि आपरेटर को केवल 12 से 15 हजार रुपये प्रतिमाह दिए जा रहे थे। अन्य रुपये फर्म और उनसे जुड़े अधिकारियों की जेब तक पहुंच रहे थे। इसकी शिकायत नगर आयुक्त संजीव मौर्य तक पहुंची तो अनट्रेंड कंप्यूटर ऑपरेटर्स की टेस्ट प्रक्रिया शुरू हुई।
लिफाफा लेते गये और निठल्ले पास होते गये
नगर निगम में 20 से ज्यादा ऐसे अनट्रेंड कंप्यूटर ऑपरेटर्स तैनात हैं, जिन्हें कम्प्यूटर चलाना तक नहीं आता। ये टैक्स विभाग, स्वास्थ्य विभाग, निर्माण और स्वच्छ भारत योजना के लिए जरूरी डेटा तक नहीं भर पा रहे। लगातार शिकायतों के बाद नगर आयुक्त ने इनका टेस्ट लेने का फैसला किया तो ये तैयार ही नहीं हुए। कुछ ऑपरेटर्स अवकाश लेकर चले गए। इससे पहले भी तत्कालीन अपर नगरायुक्त द्वारा अनट्रेंड कंप्यूटर ऑपरेटर्स की सूची बनाई थी। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात।
फर्म इग्नाइटेड सॉफ्ट ने किया खेल
नगर निगम में कंप्यूटर ऑपरेटर्स रखने के लिए फर्म इग्नाइटेड सॉफ्ट को जिम्मेदारी सौपी। ये फर्म नगर निगम में अभी तक नाली सफाई का ठेका लेती आ रही है। आरोप हैं कि फर्म इग्नाइटेड सॉफ्ट ने कंप्यूटर ऑपरेटर्स देने में कई अयोग्य लोगों को भी पूर्व अफसरों की सिफारिश पर कम्प्यूटर ऑपरेटर के तौर पर नौकरी दे दी है। मामला मेयर, नगरायुक्त तक पहुंचा तो कुछ अधिकारी फर्म को बचाने में उतर आए। टेस्ट फाइल को ठंडे बस्ते में डलवा दिया है। आरोप ये है कि फर्म मालिक गौरव सक्सेना और कुछ अफसरों की साठगांठ से कंप्यूटर आपरेटर नगर निगम के खजाने कर चाशनी को चाटने में लगे हैं। इस मामले में फर्म मालिक दीपक सक्सेना से बातचीत करने का प्रयास किया गया, लेकिन बात नहीं हो पाई।