तिथि और श्राद्ध के प्रारंभ: भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा के अध्यक्ष केसी पांडेय, ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद शर्मा और पंडित मनोज तिवारी के अनुसार, चतुर्दशी तिथि 17 सितंबर को सुबह 11:44 बजे तक रहेगी, जिसके बाद पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी। पूर्णिमा का श्राद्ध उसी दिन दोपहर के बाद किया जाएगा। साथ ही, भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी शास्त्रों के अनुसार 17 सितंबर को ही होगी। चूंकि इस बार किसी तिथि का क्षय नहीं हो रहा है, इसलिए पूरे 16 दिन तक श्राद्ध और तर्पण का समय रहेगा।
इस बार अनंत चतुर्दशी और पूर्णिमा एक साथ: ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत के मुताबिक, अनंत चतुर्दशी के अगले दिन से श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ होता है, लेकिन इस बार 17 सितंबर को ही अनंत चतुर्दशी और पूर्णिमा एक साथ होने के कारण, श्राद्ध उसी दिन दोपहर से किया जाएगा। पूर्णिमा तिथि 18 सितंबर की सुबह 8:03 बजे तक प्रभावी रहेगी, इसलिए यह श्राद्ध मंगलवार को ही होगा।
श्राद्ध में जल और तिल का महत्व: श्राद्ध कर्म में जल और तिल का उपयोग विशेष महत्व रखता है। जल को जीवन और मोक्ष का प्रतीक माना गया है, जबकि तिल को “देवान्न” कहा जाता है। पितरों को तृप्त करने के लिए इन्हीं का उपयोग किया जाता है।
पितृ पक्ष का समय: पितृ पक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अश्विन अमावस्या तक चलता है। पूर्णिमा का श्राद्ध उन लोगों का होता है, जिनकी मृत्यु किसी पूर्णिमा तिथि को हुई हो। जबकि अमावस्या का श्राद्ध सभी ज्ञात और अज्ञात पितरों के लिए किया जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण संयोग: इस पितृ पक्ष के साथ 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी, सूर्य संक्रांति पुण्यकाल, विश्वकर्मा जयंती, गणेश प्रतिमा विसर्जन और भाद्रपद पूर्णिमा भी पड़ रही है। 18 सितंबर को चंद्र ग्रहण भी होगा, लेकिन यह भारत में दिखाई न देने के कारण इसका सूतक प्रभावी नहीं होगा।
कैसे करें श्राद्ध: श्राद्ध करते समय सबसे पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय के लिए भोजन का एक अंश निकाला जाता है। इसके बाद, किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लेकर कुश और काले तिल के साथ तीन बार तर्पण किया जाता है। तर्पण के दौरान “ऊं पितृ देवताभ्यो नमः” का जाप करते रहना चाहिए।
कौन कर सकता है तर्पण: श्राद्ध और तर्पण कर्म पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा या दामाद कर सकते हैं। यदि परिवार में पुरुष सदस्य नहीं है, तो पुत्री या उसके कुल के सदस्य भी श्राद्ध कर सकते हैं।
कौआ, कुत्ता और गाय का महत्व: कौआ, कुत्ता और गाय को यम का प्रतीक माना गया है। गाय को वैतरिणी नदी पार कराने वाली माना जाता है, और कौआ यम का संदेशवाहक माना गया है। श्राद्ध में इन प्रतीकात्मक जीवों को भोजन कराया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद हमारे पितर किस योनि में गए हैं, यह हमें नहीं पता होता।
विशेष तिथियाँ: पंचमी: उन लोगों का श्राद्ध जिनकी मृत्यु अविवाहित अवस्था में हुई हो। नवमी: महिलाओं का श्राद्ध। चतुर्दशी: उन लोगों का श्राद्ध जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो। अमावस्या: ज्ञात और अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध।
श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक: धर्मशास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही किया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्मरण शक्ति केवल तीन पीढ़ियों तक ही सीमित रहती है। पितृ शांति के उपाय: पितृ शांति के लिए प्रतिदिन “ऊं पितृ देवताभ्यो नमः” का एक माला जाप करें। साथ ही “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और गायत्री मंत्र का जाप करते रहें।