आईवीआरआई से विशिष्ट सहायता मांगी संयुक्त निदेशक डॉ. रूपसी तिवारी ने इंटरफेस मीटिंग के लिए पंजीकरण करने वाले प्रतिभागियों के विवरण, बैठक के जनादेश के साथ-साथ प्रतिभागियों की अपेक्षाओं से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उत्तर पूर्वी राज्यों ने पशु चिकित्सकों के प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण, पशुधन की विभिन्न नस्लों के संरक्षण में नीति समर्थन, उत्पादन और पोषण, क्षेत्र विशिष्ट सहयोगात्मक परियोजनाएं, पशु रोग निदान और नैदानिक किट, गुणवत्तापूर्ण पशु चिकित्सा जैविक और टीके की गुणवत्ता नियंत्रण और स्थानिक क्षेत्रों में रोग के प्रकोप जैसे क्षेत्रों में आईवीआरआई से विशिष्ट सहायता मांगी।
कुक्कुट की स्वदेशी नस्ल के संरक्षण पर दिया जोर इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्य के पशुचिकित्सकों ने पशुधन और कुक्कुट की स्वदेशी नस्ल के संरक्षण, उल्लेखनीय रोगों की राज्यवार महामारी विज्ञान निगरानी, उन्नत रोग निदान तकनीकों, पशु पोषण से संबंधित उन्नत प्रयोगशाला तकनीकों, बड़े व छोटे जानवरों में आर्थोपेडिक तकनीक और छोटे व बड़े जानवरों में नेत्र विज्ञान, इकोकार्डियोग्राफी और यूएसजी में प्रशिक्षण के बारे में जानकारी व सहयोग कि अपेक्षा की।
दो तकनीकी सत्रों का किया आयोजन इस अवसर पर दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। इसमें प्रथम सत्र में संस्थान के मानकीकरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रणव धर ने पशु चिकित्सा जैविकों का उत्पादन एवं गुणवत्ता नियंत्रण पर, आईटीएमयू प्रभारी डॉ. अनुज चैहान ने संस्थान की प्रौद्योगिकियों और पोर्टफोलियो के बारे में जानकारी दी। इसके अलावा आसाम एग्रीकल्चर यूनिवसिर्टी, आसाम व आसाम, अरूणाचल, मिजोरम, मणिपुर तथा त्रिपुरा के पशुपालन विभाग के निदेशकों ने अपने विचार रखे।
बैठक में ये रहे मौजूद बैठक में संयुक्त निदेशक (शैक्षणिक) आईवीआरआई डॉ. एसके मेंदीरत्ता, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) आईवीआरआई डॉ. एसके सिंह, क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता के प्रभारी डॉ. अर्नब सेन, बेंगलुरु और मुक्तेश्वर परिसरों के संयुक्त निदेशक, क्षेत्रीय स्टेशनों के प्रधान वैज्ञानिक सहित आईवीआरआई के कर्मचारियों और छात्रों ने बैठक में भाग लिया।