क्या है विवाद?
राकेश सिंह ने प्रशासन को बताया कि यह मंदिर कभी पूजा-अर्चना का स्थान था। वाहिद अली के पिता यहां सहकारी समिति के चौकीदार के रूप में रहते थे। आरोप है कि वाहिद और उनके परिवार ने धीरे-धीरे मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया, और अब वहां मूर्तियां भी नहीं हैं।हिंदू महासभा की मांग
अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज पाठक ने दावा किया कि वाहिद अली ने मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा कर मूर्तियां हटा दी हैं। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि कब्जा मुक्त कराकर मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाए और मूर्तियों की पुन: प्राण-प्रतिष्ठा कराई जाए।वाहिद अली का पक्ष
वाहिद अली का कहना है कि उनके पिता यहां सहकारी समिति के चौकीदार थे और वह अपने परिवार के साथ 40 वर्षों से इस भवन में रह रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि यहां कोई मंदिर या मूर्तियां नहीं थीं। प्रशासन और शिकायतकर्ता ने उन्हें आठ दिनों में भवन खाली करने का आदेश दिया है, लेकिन उन्होंने इसके लिए आठ महीने का समय मांगा है।जांच में क्या निकला?
एसडीएम सदर गोविंद मौर्य के अनुसार, सहकारी समिति के रिकॉर्ड में वाहिद अली या उनके पिता के चौकीदार होने के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। 1956 में सहकारी समिति ने श्रीगंगा महारानी मंदिर की एक बिल्डिंग का हिस्सा किराए पर लिया था, लेकिन वाहिद अली को कभी समिति से वेतन नहीं दिया गया। सहकारी समिति के चौकीदार होने का दावा जांच में खारिज कर दिया गया है।जमीन का रिकॉर्ड
जांच में यह भी पाया गया कि खतौनी में मंदिर की जमीन श्री गंगा महारानी सर्वाकार जगन्नाथ चेला नरायन दास के नाम दर्ज है। सहकारिता विभाग के सहायक रजिस्ट्रार ब्रजेश परिहार ने पुष्टि की कि वाहिद अली के चौकीदार होने का कोई रिकॉर्ड सहकारिता विभाग में नहीं है।अधिकारी का बयान
“बाकरगंज की बिल्डिंग और मंदिर परिसर की जांच जारी है। शुरुआती जांच में जमीन मंदिर प्रबंधन के नाम पर ही दर्ज है। अवैध कब्जे को हटाने की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी।”– गोविंद मौर्य, एसडीएम सदर, बरेली
“वाहिद का चौकीदार होने का दावा सहकारी समिति के रिकॉर्ड में असत्य पाया गया है।”– ब्रजेश परिहार, एआर कोआपरेटिव