Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अर्जुन के प्रेम और चित्रांगदा की वीरता की अनूठी प्रस्तुति, फिर हुआ ये

एसआरएमएस रिद्धिमा में रविवार को विश्वविख्यात साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित संगीतमय नाटक ‘चित्रा’ का शानदार मंचन हुआ। रुबरू थिएटर, दिल्ली द्वारा प्रस्तुत इस नाटक का निर्देशन काजल सूरी ने किया, जबकि नाटकीय रूपांतरण विक्रम शर्मा द्वारा किया गया।

2 min read

बरेली। एसआरएमएस रिद्धिमा में रविवार को विश्वविख्यात साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित संगीतमय नाटक ‘चित्रा’ का शानदार मंचन हुआ। रुबरू थिएटर, दिल्ली द्वारा प्रस्तुत इस नाटक का निर्देशन काजल सूरी ने किया, जबकि नाटकीय रूपांतरण विक्रम शर्मा द्वारा किया गया।

यह नाटक महाभारत की एक महत्वपूर्ण पात्र राजकुमारी चित्रांगदा और महान योद्धा अर्जुन की प्रेम कथा पर आधारित है। पहली बार 1913 में लंदन की इंडिया सोसाइटी द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित यह नाटक, आज भी अपनी गहराई और संदेश के लिए चर्चित है।

नाटक की कहानी: प्रेम, सौंदर्य और आत्मस्वीकृति की गाथा

नाटक की शुरुआत चित्रांगदा और प्रेम के देवता मदन के संवाद से होती है। जब मदन चित्रा से उसकी व्यथा पूछते हैं, तो वह बताती है कि वह मणिपुर के राजा की इकलौती संतान है। पुत्र न होने के कारण, उसका पालन-पोषण एक योद्धा के रूप में किया गया, और उसे कभी एक स्त्री की तरह जीने का अवसर नहीं मिला।

चित्रा बताती है कि एक दिन जंगल में उसकी मुलाकात अर्जुन से हुई, जो उस समय बारह वर्षों के ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहे थे। अर्जुन के प्रति आकर्षित होने के बावजूद, जब चित्रा ने अपना प्रेम व्यक्त किया, तो अर्जुन ने उसे ठुकरा दिया।

निराश चित्रा प्रेम के देवता मदन से अपनी सुंदरता को निखारने की प्रार्थना करती है, ताकि अर्जुन का हृदय जीत सके। मदन उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हैं और उसे दिव्य सौंदर्य के साथ अर्जुन के साथ एक वर्ष बिताने का वरदान देते हैं।

अर्जुन चित्रा की नई छवि से मोहित होकर अपनी प्रतिज्ञा तोड़ देते हैं। वर्षभर उनका प्रेम जीवन चलता है, लेकिन समय के साथ अर्जुन में बेचैनी बढ़ने लगती है। वह वापस अपने योद्धा जीवन की ओर लौटने की इच्छा प्रकट करता है और चित्रा के अतीत को लेकर प्रश्न करने लगता है।

संयोग से अर्जुन को मणिपुर पर हमले की खबर मिलती है और वह वहाँ की योद्धा राजकुमारी चित्रांगदा की वीरता के किस्से सुनकर प्रभावित होता है। अंततः, चित्रा स्वयं अर्जुन के समक्ष स्वीकार करती है कि वह ही मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा है।

वह अर्जुन को बताती है कि उसने प्रेम पाने के लिए सौंदर्य की भीख मांगी थी, लेकिन अब वह चाहती है कि अर्जुन उसे वैसे ही स्वीकार करे, जैसी वह वास्तव में है – एक योद्धा, न कि केवल एक सुंदर स्त्री।

अर्जुन यह जानकर प्रसन्न होता है कि चित्रा उनके पुत्र को जन्म देने वाली है, और इस तरह प्रेम, आत्मसम्मान और आत्मस्वीकृति की यह गाथा पूर्ण होती है।

कलाकारों ने जीवंत किया नाटक

इस नाटक में प्रमुख भूमिकाओं में वर्षा (चित्रांगदा) और स्पर्श रॉय (अर्जुन) ने अपने शानदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

अन्य भूमिकाओं में –

शुभम शर्मा (मदन)

नीरज तिवारी (योद्धा 1)

कृष बब्बर (योद्धा 2)

रशीद ने मेकअप की जिम्मेदारी संभाली, जबकि जसकिरण चोपड़ा और गीता सेठी ने कॉस्ट्यूम और बैकस्टेज का प्रबंधन किया। संगीत संचालन प्रवीण द्वारा किया गया।

विशिष्ट अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति

इस भव्य मंचन के अवसर पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति जी, आशा मूर्ति जी, उषा गुप्ता जी, सुभाष मेहरा, डॉ. प्रभाकर गुप्ता, डॉ. अनुज कुमार सहित शहर के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। इस नाटक ने प्रेम, आत्मसम्मान और नारी शक्ति का एक सशक्त संदेश दिया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।


बड़ी खबरें

View All

बरेली

उत्तर प्रदेश

ट्रेंडिंग