गांव के अधिकतर लोग चाहते हैं कि उनके गांव को अब स्थाई रूप से या तो कोटा या फिर बारां जिले का हिस्सा बना दिया जाए। बपावर थाना क्षेत्र का अरनिया गांव पूर्व में जागीरी प्रथा का गांव रहा है। कोटा जिले की स्थापना के समय यह गांव कोटा जिले का हिस्सा हुआ करता था।
बारां जिला बना तो परवन नदी की तीर पर बसे कोटा जिले के इस गांव को बारां तहसील व जिले में समिलित कर लिया। ग्रामीणों की मांग व विरोध के चलते करीब 18 वर्ष पूर्व इस गांव को फिर से सांगोद तहसील व कोटा जिले में शामिल कर लिया। बपावर थाना क्षेत्र के सभी 33 गांव (अरनिया सहित) सांगोद तहसील व कोटा जिले में शामिल है। बपावर थाना क्षेत्र के इन 33 गांवों में से 32 गांव सांगोद विधानसभा व कोटा-बूंदी लोकसभा का हिस्सा है, जबकि अरनिया गांव अभी तक अंता विधानसभा व बारां-झालावाड़ लोकसभा में शामिल है।
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वर्तमान में गांव के किसानों को बिजली संबंधी कोई भी काम हो तो सहायक अभियंता कार्यालय बारां जाना पड़ता है। जबकि जमीन-जायदाद के कार्य के लिए सांगोद जाना पड़ रहा है। किसान क्रेडिट कार्ड या अन्य ऋण लेने के लिए किसानों को कोटा व बारां जिले के बैंकों का सहारा है तो जमीन संबंधी कार्य के लिए सांगोद तहसील मुख्यालय पर जाना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि अरनिया को कोटा या बारां जिले में स्थाई रूप से समिलित किया जाना चाहिए, ताकि वर्षों से चली आ रही समस्या से ग्रामीणों को निजात मिल सके।19 वर्ष से बदला पंचायत क्षेत्र
वर्ष 2005 तक अरनिया गांव बारां जिले की रटावद पंचायत में था, जिसे 2005 में खड़िया पंचायत में शामिल कर दिया। करीब 3 सौ की आबादी वाले इस गांव के किसान बिजली का बिल जमा कराने के लिए बारां जिला मुख्यालय जाते है। एक गांव के काम दो जिलों में विभाजित होने से ग्रामीण काफी परेशान है।परवन से सपन्नता
अरनिया गांव परवन नदी के किनारे बसा होने से यहां पर परवन की काफी देन है। नदी में करीब 10 फीट से अधिक पानी है। गांव के सभी खेत नदी की वजह से सरसब्ज होने से गांव में सपन्नता है। यहां गोस्वामी परिवार के सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा है। गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर 8वीं कक्षा तक स्कूल जरूर है। बाकी अन्य कोई सरकारी सुविधा गांव को नसीब नहीं है। यह भी पढ़ें
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परिवार का हर सदस्य आता है मंदिर
गांव में भगवान लक्ष्मीनाथ व माता का मंदिर है। हर परिवार का सदस्य सुबह उठते ही मंदिर पहुंचकर दर्शन करता है। दर्शन के बाद ही गांव के लोग अन्य काम-काज की शुरूआत करते है। चिकित्सा के नाम पर गांव में उप स्वास्थ्य केन्द्र भी नहीं है।दीपावली भी सामूहिक
दीपावली के समय लक्ष्मी पूजन के बाद यहां गांव के सभी लोग मंदिर के पास भगवान को साक्षी मानकर खुशी मनाते हैं। सामूहिक रूप से पटाखे चलाते है। सभी अपने-अपने घर से मिठाई लाते है। उस मिठाई को एकसाथ मिलाकर फिर उसे वितरित किया जाता है। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से गांव के सभी लोगों के बीच परिवार जैसा माहौल बना रहता है।सिर्फ नाम का विद्यालय
गांव के लोगों ने संवाददाता को बताया कि गांव में भले ही 8वीं कक्षा तक विद्यालय है। परन्तु हकीकत यह है कि अधिकतर समय विद्यालय बंद रहता है। एक बालक भी विद्यालय नहीं जाता। सरकारी रिकार्ड में भले ही विद्यालय संचालित हो रहा है। परन्तु जमीनी हकीकत सरकारी रिकार्ड से कोसों दूर है।