ऐसे हुआ उद्भव
ब्रह्माणी माता का प्राकट्य 700 वर्ष पहले का बताया गया है। यह मंदिर पुराने किले में स्थित हैं और चारों ओर से ऊंचे परकोटे से घिरा है। इसे गुफा मंदिर भी कहा जा सकता है। मंदिर के तीन प्रवेशद्वारों में से दो द्वार कलात्मक हैं। मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वाभिमुख है। परिसर के मध्य स्थित देवी मंदिर में गुम्बद द्वार मंडप और शिखरयुक्त गर्भगृह है। गर्भगृह के प्रवेश द्वार की चौखट 5 गुणा 7 के आकार की है, लेकिन प्रवेश मार्ग 3 गुणा ढाई फीट का ही है। इसमें झुककर ही प्रवेश किया जा सकता हैं। इसलिए यहां पुजारी झुककर ही पूजा करते हैं। मंदिर के गर्भगृह में विशाल चट्टान है। चट्टान में बनी चरणचौकी पर ब्रह्माणी माता की पाषाण प्रतिमा विराजमान है। यह भी पढ़ें
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खोखरजी के वंशज ही करते हैं पूजा
ब्रह्माणी माता के प्रति इस अंचल में लोगों की गहरी आस्था है। लोग यहां आकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर पालना, छत्र या कोई और वस्तु मंदिर में चढ़ाता है। जब यहां ब्रह्माणी माता का प्राकट्य हुआ और वह सोरसन के खोखर गौड़ ब्राह्मण पर प्रसन्न हुई थी। तब से खोखरजी के वंशज ही मंदिर में पूजा करते हैं। परंपराओं में एक गुजराती परिवार के सदस्यों को सप्तशती का पाठ करने, मीणों के राव भाट परिवार के सदस्यों को नगाड़े बजाने का अधिकार मिला हुआ है।मेले का होता आयोजन
सोरसन ब्रह्माणी माता के मंदिर पर साल में एक बार शिवरात्रि पर गर्दभ मेले का आयोजन होता है। इस मेले में पहले कई राज्यों से गधों की खरीद-फरोख्त होती थी। अब बदलते समय के साथ-साथ यहां लगने वाले गर्दभ मेले में गधों की कम और घोड़ों की ज्यादा खरीद-फरोख्त होने लगी है। यह भी पढ़ें