इसके साथ ही सुरम्य और सघन वन आच्छादित घाटी का वैभव भी इतिहास बनने की आशंका है। जबकि, राज्य सरकार ने दो साल पहले ही शाहाबाद के 17 हजार 884 हेक्टेयर क्षेत्र को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया था।
सोशल मीडिया पर विरोध शुरू
वहीं, इस परियोजना को लेकर सोशल मीडिया पर विरोध होना भी शुरू हो गया है। शाहबाद के जंगलों को काटने की जानकारी सामने आते ही स्थानीय जनता, पर्यावरण प्रेमी, सामाजिक संस्थाएं और पर्यावर्ण से जुड़े संगठन विरोध में आ गए हैं। साथ ही पेड़ काटने पर खेजड़ी और चिपको जैसे आंदोलन की चेतावनी दी है। पीपुल्स फॉर एनिमल के जिला प्रभारी विठ्ठल सनाढ्य का कहना है कि एक लाख से ज्यादा पेड़ काटने की अनुमति को तत्काल निरस्त किया जाए। यह क्षेत्र जड़ी बूटियों और वन्यजीवों के लिए जाना जाता है। विकास होना चाहिए, परन्तु पेड़ों की बलि देकर नहीं। सरकार ने निर्णय नहीं बदला तो हम अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।
यहां भी पढ़ें : राजस्थान के इस जिले में ली जाएगी 1 लाख पेड़ों की बलि, इस बड़े प्रोजेक्ट पर शुरू होगा काम
1800 मेगावाट की परियोजना को मिली मंजूरी
दरअसल, राजस्थान के बारां जिले में पंप स्टोरेज प्लांट को लगाने के लिए संरक्षित वन क्षेत्र में हरे पेड़ काटने के लिए केंद्र सरकार की वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने मार्च 2025 तक पेड़ो को काटने की हरी झंडी दी है। इसके लिए केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री ने अनुमोदन किया है। निजी कंपनी ग्रीनको एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड की ओर से यह प्लांट शाहाबाद के हनुमंतखेड़ा, मुंगावली में लगाया जा रहा है। जिसमें 1800 मेगावाट की बिजली उत्पादन करने की क्षमता वाले परियोजना का निर्माण किया जाएगा। बताया जा रहा है इस परियोजना पर लगभग 10000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। ग्रीनको एनर्जीज़ प्राइवेट लिमिटेड, ग्रीनको मॉरीशस लिमिटेड की एक सहायक कंपनी है और एक अग्रणी अक्षय ऊर्जा कंपनी है जो ऊर्जा भंडारण और परिसंपत्ति प्रबंधन समाधान प्रदान करती है।
यहां भी पढ़ें : ‘गोडसे को मानने वाले गांधी के नहीं हो सकते’, गांधी जयंती की छुट्टी रद्द की तो भड़के डोटासरा; BJP को सुनाई खरी-खोटी
जिले के करीब 1 लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे
इस परियोजना के लिए जिले के करीब 1 लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे। जिसकी वजह से वन क्षेत्र की जैव विविधता को काफी नुकसान होने की संभावना है। जबकि, राज्य सरकार ने 2 साल पहले ही इस क्षेत्र को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया था। इस परियोजना के लिए करीब 700 हेक्टेयर भूमि की जरूरत पड़ेगी। जिसमें 400 हेक्टेयर भूमि केवल वन क्षेत्र की है। हालांकि केन्द्र सरकार की वन सलाहकार समिति ने भी हरी झंडी दे दी है। जिसके बाद केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्री ने भी अनुमोदन कर दिया है। यह क्षेत्र जड़ी बूटियों और वन्यजीवों के लिए जाना जाता है। जिसमें इसके पेड़ो के कट जाने की वजह से पर्यावरण को काफी नुकसान होगा।